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१४८ ] धरणानुयोग – २
६. परमहंसा,
७. बहुजवगा,
कुलिया
विराधक परिव्राजक
से णं परिव्वायगा बाणधम्मं च सोयधम्मं व तित्यामिसेयं माघवेाणा, पण्णवे माणा परुवेमाणा बिहरति । षं पं अहं fe for as wवह तं णं उदएन म मट्टियाए य वालियं समराणं सुई अवति । एवं खलु अम्हे चोखा वारा सुई, गुराभावारा महिला अभियजल त्याची अभिव्ये मिलायो।
१.
परिव्यया।
होते हैं, जो इस प्रकार है
उनमें आठ ब्राह्मनगर (१) कर्ण, (५) कृष्ण, (६)
८. नारए ।
(२) कर कष्ट, (३) बम्बड, (४) पाराशर, पायन, (७) देवगुप्त तथा (८) नारद उनमें सत्रिय परिवहोते है जो उस प्रकार है-(१)(२) (३), (४) (४) विदेह (१) राजराज, (७) राजराम तथा (८) ब
तस्य खलु इमे अट्ट माहणं परिध्वायगा भवंति सं जहां१. कण्णे य २. करकंडेय, ३. अंबडे य ४ परासरे । ५. कण्हे ६. दीवाने लेब 19. देवगुत्ते य तत्व हमे अतिरिवाभतिजा १. सीलई २. ससिहारे प ३. नग्गई ४ माईति य । ५. विदेहे ६, राधाराया, ७. राया रामे ८ बजेति य ॥ ते गं परिष्वायगा रिटवेव-यनृपमेव सामवेद- अहष्वणवेद इतिहास-पंचगाणं निष्टानं संगीबंगा रस्ता उष्टं बेरा सारा पारणा धारणा, सबी सहितसविरहस्यज्ञाता, चारों वेदों के सम्प्रवर्तक, वेदों के पारानी उन्हें सारया, संजाणे, सिक्खा, कप्पे वारणे, ये निकले, स्मृति में बनाये रखने में मदाम तथा वेदों के छहों अंगों के जाता मोहसामपणे अभ्यो यम एव सा परिपत्र में विवाद, गणित, विद्या, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, अण्णेषु सत्येसु व्याय व नए परिणिड़िया यानि होत्या
वे परिवार मन्साइन नारों वेदों, पाँचवे इतिहास छठे निषस्तु के अध्येता वेदों के सांगोपा
छन्द निरोषि वस्त्र तथा अन्य ब्राह्मणों के लिए हिला यहा अथवा वैदिक विज्ञानों के विचारों के
नाम
तेसि णं परिष्वायगाणं णो कप्पड़ १. अगहं वा २. तलायं बा. २. नई वा ४. वाजिं वा, ५. पोखरिणिं वा ६. बीपिं वा. ७ गुंजालियं वा ८. सरं वा ६. सागरं वा ओगा हिराए, जम्पत्य लागगमणं ।
तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पह १. सगळं बा. २. रहं था, ३. जाणं वा ४. जुग्गं वा ५. विल्लिं वा ६ मिल्लिं वा, ७८ वा ६. संस्माणियं दुरुहिता
छि 1
(६) परमहंस, (10)
45,
(८) कुटीचर संज्ञक चार प्रकार के यति एवं
(E) कृष्ण परियाजक आदि।
तेसि णं परिष्वायगाणं णो कप्पड़ १. आसं वा २. हरिवं खा, ३. उट्टं वा, ४. गोणं वा ५. महिसं वा ६. खरं वा, दुहिता मिल गया।
सूत्र ३२३
ग्रन्थ – इन सब में सुपरिपक्व ज्ञानयुक्त होते हैं ।
वे परिवाजक दानधर्म, शोष-धर्म तीर्थस्थान का जनसमु दाय में कथन करते हुए विशेष रूप से समझाते हुए युक्तिपूर्वक सिद्ध करते हुए विचरण करते हैं। उनका कथन है कि हमारे मतानुसार जो कुछ भी अशुचि अपवित्र प्रतीत हो जाता है, बढ़ मिट्टी लगाकर जल से धो लेने पर हो जाता है इस प्रकार हम निर्मल देह एवं निर्मल आचार युक्त हैं, पवित्र और पवित्राचार युक्त हैं, अभिषेक स्नान द्वारा जल से अपने आपको किरनिनिया स्वयं जायेंगे।
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उन परिवादों के लिए (१) कुए. (२) तालाब (३) नदी, (४) बावड़ी, (५) पुष्करिणी, (६) दीर्घिका (७) गुंजालिका, (८) तालाब तथा (६) जलाशय में प्रवेश करना नहीं कल्पता है । किन्तु मार्ग में आवे तो इनमें चल
सकते हैं । जब परिवाजों को (१), (२) र
(३) बाद,
(४) युग्म-दो हाथ लम्बे चौड़े डोली जैसे यान, (५) गिल्लि दो आदमियों द्वारा उठाई जाने वाली एक प्रकार की शिविका, (६) बिल्लिदो घोड़ों की बम्धी, (७) शिविका, (८) पर्देदार पासखी तथा (६) स्यन्दमानिका पुरुष प्रमाण पालखी पर चढ़कर जाना नहीं कल्पता है ।
उन परिवारों को (१) पीछे (२) हाथी (३),(४) बेल
(५) में तथा (६) गधे पर सवार होकर जाना किन्तु जबर्दश्ती कोई बैठा दे तो उनकी प्रतिमा
नहीं कल्पता है नहीं होती है।