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धरणानुयोग-२
ग्यारह उपासक प्रतिमाएं
सूत्र २६३
से णं सामाइयं देसावगासिब सम्म अणुपालित्ता भवइ । वह सामायिक और देशावकाशिक शिक्षावत को भी सम्यक
प्रकार से पालन करता है। से णं चढ़द्दसटूमुदिड-पुण्णमासिणीसु पविपुष्णं पोसहोदवासं बह चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णमासी तिथियों सम्यं अगुपालिसा भवा।
में परिपूर्ण पोषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है। से णं एगराइयं काउस्सग-परिमं नो सम्म अगुपालिसा किन्तु एक रात्रिक कायोत्सर्ग प्रतिमा का सम्यक् परिपालन
नहीं करता है। से तं चइत्या उवाप्तग-पतिमा ।
यह चौथी उपासक प्रतिमा है। अहावरा पंचमा उवासग-पडिमा
अब पाँची उपासक प्रतिमा का वर्णन करते हैसव्य-धम्म राई मावि भबइ।
वह प्रतिमाधारी थावक सर्वधर्मरुचिवाला होता है। तस्स णं बनई सीलवय-गुणवय-वेरमण-पाचवताण-पोसहोव- उसके बहुत से शीलवत, गुणवत, प्राणातिपातादि विरमण, बासाई सम्म पट्टवियाई भवंति।
प्रत्याझ्याग और पौषधोपवास आदि सम्यक् धारण किये हुए
होते हैं। से गं सामाइयं देसावगासिय सम्म अणुपालिसा भवइ । वह सामायिक और देशाववाशिक व्रत का सम्यक् प्रकार से
परिपालन करता है। से णं चउद्दसि-अदृमि उद्दिट्ट-पुष्णमासिणीसु परिपुण्णं पोसही- वह चतुर्दगी, अष्टमी, अमावस्या और पूनमसी तिथियों में वयास सम्म अणुपातिता भवद ।
परिपूर्ण पोषधोपवाग का मम्यक् परिपालन करता है। से णं एमराइयं काउस्सग-पडिमं सम्म अणुपासिता भव। बह एक रात्रिक बायोत्सर्ग प्रतिमा का सम्यक् परिपालन
करता है। से गं असिणाणए, वियउभोई, मलिकडे, दिया य राओ य किन्तु अस्नान, दिवरा गोजन, मुकुलीकरण, दिवस एवं बंमचेरं, जो सम्म अणुपालित्ता प्रवह।।
रात्रि में ब्रह्मचर्य पालन इनका सम्यक् परिपालन नहीं करता है । से णं एयारवेणं विहारेण विहरमाणे जहणणं एगाहं वा, वह इस प्रकार के आचरण से विचरता हुआ जघन्य एक दुयाहं वा, सियाहं वा, जाव-उक्कोसेणं पंच मासं विहरह।। दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट पाँच मास सक
इस प्रतिमा का पालन करता है। से तं पंचमा उवासप-पडिमा।
यह पाँचदी उपासक प्रतिमा है। अहाबरा छट्टा उवासंग-पडिमा
अब छठी उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैंसम्व-धम्म रई यावि मवइ-जाव-से गं एगराइयं काउस्सप वह प्रत्तिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचिवाला होता है यावत्पडिमं सम्म अणुपालिता भवइ ।
वह एक रात्रिक कायोत्सर्ग प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन
करता है। से गं असिणाणए, बियडभोई, मउसिकडे, बिया य रामओय वह स्नान नहीं करता, दिन में भोजन करता है, धोती की संभयारी,
लांग नही लगाता, दिन में और रात्रि में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन
करता है। सचित्ताहारे से अपरिष्णाए भवद ।
किन्तु वह सचित्त आहार का परित्यागी नहीं होता है। से णं एयारवेणं बिहारेणं विहरमाणे जहाणेणं एगाहं वा इस प्रकार का आचरण करते हुए विचरता हुआ वह जघन्य दुआएं बा, तिमाहं या-जाव-उक्कोसेणं छम्मासे विहरेजा। एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट छह मास
तक इस प्रतिमा का पालन करता है।
प्रारम्भ की चार प्रतिमाओं का काल मान नहीं कहा गया है, तथापि उपासकदशा की टीका में इनका काल बताया है वह इस प्रकार हैपहली प्रतिमा का उत्कृष्ट एक मास, दूसरी का उत्कृष्ट दो मास, तीसरी का उत्कृष्ट तीन मास, और चौथी का उत्कृष्ट चार मास।