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सूत्र २०६-३०७
आराधक अनारक्षक नियंन्य आदि के मंग
४. एगे जो सीलसंपन्ने जो सुसंपन्ने।
१. सरथ णं मे से पढमे पुरिसमाए से णं पुरिसे सील असुयवं उवरए अविभायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते ।
२. तरणं जेसे वो पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं सुयवं अणुवरए, विनायधम्मे, एस जं गोथमा । मए पुरिसे देखविराहए पन्यसे ।
३. लक्ष्य गं जे से लक्ष्ये पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं, सुयवं, उमरए, विज्ञायधम्मे, एस गं गोयमा ! मए पुरिसे बच्चाहर पसे ।
२. रातिणिए समणे जिथे अत्यकस्मे अत्यकिरिए आसावी समिए धम्मस्त आराहए भवति ।
४. तस्य णं मे से चउथे पुरिसजाए से गं पुरिसे असील अनुवर्थ, अनुवरए अविष्यायाम्मे, एस गोयमा ! मए पुरिसे सच्च विराहए पष्ण से ।
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- विया स उ १०, सु. १-२ कहा है । रियाई भंगाआराहग-अणाराहग ३०७ असारि गिग्गंथा पण्णत्ता, तं जहा
१. रातिणिए समणे गिरमे महाकम्मे महाकिरिए अणातावी असमिते धम्मस्स अणाराहए भवति ।
२. घोमरातिपिए समर्थन महाकम्मे महाकिरिए अणातावी असमिते धम्मस्स अणाराहए भवति ।
४. श्रमशतिपिए समये जिग्ये अध्यकम्मे अप्यकिरिए आता समिते धम्मस्त आराहुए भवति ।
एवं चैव चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता-जात्र- मशहुए भवई । बनारस जहा१. रातिपिया समयी महान्मा महाकरिया याबी असमिता धम्मस्स अणाराहिया भवति ।
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२. रातिणिया समणी णिग्गंधी अध्यकम्मा अप्यकिरिया आतायी समिता धम्मस्स आराहिया भवति ।
आराधक विराधक
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(४) एक व्यक्ति न शीलसम्पन्न है और न सम्पन्न है। (१) इनमें से जो प्रथम प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान् है, परन्तु श्रुतवान् नहीं है। वह पापादि से निवृत्त है किन्तु धर्म को विशेष रूप से नहीं जानता है। हे गौतम! इस पुरुष को मैंने देश- आराधक' कहा है।
(२) इनमें से जो दूसरा पुरुष है, वह पुरुष है, परन्तु श्रुतवान है। पापादि से अनिवृत्त है, विशेष रूप से जानता है। हे गौतम! इस पुरुष विराधक' कहा है।
(३) इनमें से जो तृतीय पुरुष है वह पुरुष शीलवान् भी है और श्रुतवान् भी है। वह पापादि से निवृत्त है और धर्म का भी ज्ञाता है। हे गौतम! इस पुरुष को मैंने 'सर्व माराधक कहा है।
(४) इनमें से जो पुरुष है, वह न तो भीलवान् है औरना है वह पापादि से निवृत है, धर्म का भी खाता नहीं है। हे गौतम! इस पुरुष को मैंने 'सर्व विराधक
शीलवान् नहीं परन्तु धर्म को को मैंने 'बेश
आराधक - अनाराधक निर्ग्रन्थ आदि के मंग-३०७. निर्ग्रन्थ चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे
(१) कोई श्रमण निर्ग्रन्थ दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ होकर भी महामानवाला महाकिया वाला, अतपस्वी और समिति रहित होने के कारण धर्म का विराधक होता है।
(२) कोई सनिक श्रमण निर्ग्रन्थ अल्पकर्म वाला, अल्पक्रिया वाला, तपस्वी और पाँच समितियों से युक्त होने के कारण धर्म का आराधक होता है ।
(३) कोई निर्ग्रन्थ भ्रमण दीक्षा पर्याय में छोटा होकर महाकर्मा, महाविय, अनावानी और अमित होने के कारण धर्म का विराधक होता है ।
(४) कोई अल्प दीक्षा पर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्य अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, तपस्वी और समित होने के कारण धर्म का आराधक होता है ।
इसी प्रकार चार प्रकार के माल कहे गये हैं-त्आराधक होते हैं ।
निन्थियाँ चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे—
(१) कोई सरिक श्रमणी निधी महावर्मा, महात्रिया अतपस्विनी और अमित होने के कारण धर्म को विराधिका होती है ।
(२) कोई शनिक धमणी निधी अल्पकर्मा, बल्पकिया, तपस्वी और सनित होने के कारण धर्म की आधिका होती है।