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सूत्र ३०९-३१०
आराधना के प्रकार
आराधक-पिराधक
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आराधना विराधना के प्रकार--२
आराहणा-पगारा
आराधना के प्रकार-- ३०६. दुविहा बाराहणा पण्णत्ता, संजहा
३०६. आराधना दो प्रकार की कही गई है। यथा१. धम्मियाराहणावेव, २. केवलिबाराहणा पेव। (१) धामिकी आराधना, (२) केवली आराधना, धम्मियाराहणा विहा पण्णत्ता, तं जहा
धार्मिकी आराधना दो प्रकार की कही गई है । यथा - . १. सुपधम्माराहणा घेव, २. चरितधम्माराहणावेव।। (१) श्रुतधर्म की बाराधना, (२) चारित्रधर्म की आराधना, केवलिभाराहणा विहा पण्णता, तं जहा
केवलिकी आराधना दो प्रकार की कही गई है । यथा -- १. अन्तकिरिया बेध, २ कप्पविमाणोववत्तिया चेव । (१) अन्तक्रिया रूप, (२) कल्पविमान उत्पत्ति रूप,
-ठाणं.स. २, उ. ४, सु. ११८ ५०-कविहा गं भंते ! आराहणा पण्णसा?
प्र०-भन्ते ! आराधना कितने प्रकार की कही गई है ? उ०-गोयमा ! तिषिहा आराहणा पण्णता,तं जहा
उ०-गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है । यथा१. गाणाराहणा, २. सणाराहणा,
(१) शान आराधना, (२) दर्शन आराधना, ३. चारिताराहना।
(३) चारित्र आराधना । प०–णाणाराहणा णं मंते ! कहविहा पण्णसा?
प्र.-मन्ते ! ज्ञान आराधना कितने प्रकार की कही
गई है? उ० - योयमा ! तिदिहा पण्णत्ता, तं जहा
उ. - गोतम ! तीन प्रकार की वही गई है। यथा१. उरकोसिया, २. मनिक्षमा, ३. जहण्णा । (१) उत्कृष्ट, (२) मध्यम, (३) जघन्य । प०-बसणाराणा पं मंते ! काविहा पण्णता ?
प्र. भन्ते ! दर्शन आराधना कितने प्रकार की कही
उ.- योयमा ! तिषिहा पण्णता, तं जहा
१. उक्कोसिया, २. मजिसमा, ३. जहणा । ५० चरिताराहणा णं भंते ! काविहा पणता?
उ०--गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है। यथा(१) उत्कृष्ट, (२) मध्यम, (३) जघन्य। प्रत-भन्ते ! चारिम आराधना कितने प्रकार की कही
30--गोयमा 1 तिविहा पण्णता, तं जहा ..
उ०-गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है । यथा१ जक्कोसिया, २. मजिसमा, ३. जहण्णा। (१) उत्कृष्ट, (२) मध्यम, (३) जघन्य ।
-वि. स. ८, उ.१०, सु. ३-६ जहण्णुक्कोसिया आराहणा-.
जघन्य-उत्कृष्ट आराधना३१०. ५०-जस्स गं भंते ! उक्कोसिया जाणाराणा तस्स उक्को- ३१.... भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट कानाराधना होती
सिया बंसणाराहणा ? जस्स उपकोसिया सणाराहणा है. क्या उसके उत्कृष्ट दर्थनाराधना होती है जिस जीव के उत्कृष्ट तस्स उनकोसिया जाणाराहणा?
दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है? 30--पोयमा ! जस्स उक्कोसिया जाणाराहणा तस्स बसणा- उ०-गौतम ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है,
राहणा उक्कोसिया वा अजहण्ण उक्कोसिया था, उसके दर्शनाराधना उत्कृष्ट या मध्यम होती है। जस्स पुण उक्कोसिया सणाराहणा तस्स गाणाराहणा जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, उक्कोसा वा जहष्णा वा, अजहण्णमक्कोसा वा। जघन्य या मध्यम ज्ञानाराधना होती है।
१ यहाँ केवली से थनकेवली, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी और केवलज्ञानी ये चारों लिये जाते है। स्थानांग वृत्तिकार ने कहा -
"श्रु तावधि मनःपर्याय केवल ज्ञानीनाम् इयं केवलिकी (संज्ञा)। सा चासावाराधना चेति केवलिक्याराधनेति ।