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चरणानुयोग - २
- जस्त गं भंते ! उक्कीसिया जाणाराहणा तस्स उनको विपरिताराया? वस्तुकोलिया परिताराहगा तरसुक्रोशिया गाणार हणा
उ०- बद्दा उनकोसिया गाणाराहणा में दंसणा राहणा व भणिया तहा उनकोसिया णाणाराहणा य वरिता राणा व भाषियन्वा ।
उनकोसिया दंसणाराहणा तस्सुरको सिया परिसराणा ? कोसिया परिसारण तरको सभाहणा ?
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विराहया पगारा
२११
४० गोपमा र उनकोसिया इंसणाराहणा तस्थ चरिताराणा उक्कोसा वा जहण्णा वा अजहण्णमणकोसा था,
जस्स पुण उक्कोसिया परिताराहणा तस्स दंसणाराहणा जिपमा उक्कोसा ।
- वि. स. उ. १०, सु. ७-६
राहणाओ पाओ तं जहा १. जाग विराहणाए
२.
२. ए
विराहचाए,
- सम सम ३. सु. १
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प्र० - भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारणाराधना होती है, जिस जीव के उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ?
ए० जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और दर्शनाराधना के विषय में कहा उसी प्रकार उत्कृष्ट शानाराधना और उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में भी कहना चाहिए ।
आराहगा अणारंभा अणगारा
२१२. मामावर सविसेस मया सततं ना
-
सूत्र ३२०-३१२
प्र० । जिसके दर्शनाराधना होती है, क्या - भगवन् 1 उत्कृष्ट उसके उत्कृष्ट पारिना होती है, जिसके उत्कृष्ट चाराराधना होती है क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है ?
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आराधक विराधक की गति--3
अणारंभा, अपरिहा, धम्मिया, धम्माया धम्मिट्ठा धम्मलाई लोई, धम्मपलाजणा, धम्यापारा मेव विकिपेाणा, सुया, सुपडियानंदा साहू
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उ-योम ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य चारिवाराधना होती है ।
जिसके होती है, उसने नियम से उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है ।
१. सध्या पाणाडवायाओ पडिविरया ।
२. साओ साओ पतिविरया ।
. सध्याओ अविण्णादाणाओ पडिविरया ।
१ पडिकासामितिहि विराहणाई, तं जहा --- १. जाणवि राणाए
विराधना के प्रकार
३११. विराधना तीन प्रकार की कही गई है। यथा(२) दर्शवधन (१) ज्ञानविना
(३) भारि विराधना
आराधक अनारम्भ- अणगार
३१२. ग्राम, आकर - यावत् सनिवेश में जो ये मनुष्य होते हैं, यथा
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आरम्भ रहित, परिग्रह रहित, धार्मिक, धर्मानुगामी, धर्मिष्ठ, धर्म का कथन करने वाले धर्म का अवलोकन करने वाले धर्मप्ररंजन, धर्मसमुदाचार, धर्मपूर्वक जलाने वाले सुशील, सुव्रत, स्वात्मपरितुष्ट होते हैं ।
(१) सब प्रकार की हिंसा प्रतिविरत होते हैं। असे प्रतिविरत होते हैं।
(२)
(३) सर्व चोरी से प्रतित होते हैं।
२. सदराहणाए
२. परिवराहचाए।
- आव. अ. ४ सु. २२ ( ५ )