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________________ १३६] चरणानुयोग - २ - जस्त गं भंते ! उक्कीसिया जाणाराहणा तस्स उनको विपरिताराया? वस्तुकोलिया परिताराहगा तरसुक्रोशिया गाणार हणा उ०- बद्दा उनकोसिया गाणाराहणा में दंसणा राहणा व भणिया तहा उनकोसिया णाणाराहणा य वरिता राणा व भाषियन्वा । उनकोसिया दंसणाराहणा तस्सुरको सिया परिसराणा ? कोसिया परिसारण तरको सभाहणा ? ५० व काr विराहया पगारा २११ ४० गोपमा र उनकोसिया इंसणाराहणा तस्थ चरिताराणा उक्कोसा वा जहण्णा वा अजहण्णमणकोसा था, जस्स पुण उक्कोसिया परिताराहणा तस्स दंसणाराहणा जिपमा उक्कोसा । - वि. स. उ. १०, सु. ७-६ राहणाओ पाओ तं जहा १. जाग विराहणाए २. २. ए विराहचाए, - सम सम ३. सु. १ • प्र० - भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारणाराधना होती है, जिस जीव के उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? ए० जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और दर्शनाराधना के विषय में कहा उसी प्रकार उत्कृष्ट शानाराधना और उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में भी कहना चाहिए । आराहगा अणारंभा अणगारा २१२. मामावर सविसेस मया सततं ना - सूत्र ३२०-३१२ प्र० । जिसके दर्शनाराधना होती है, क्या - भगवन् 1 उत्कृष्ट उसके उत्कृष्ट पारिना होती है, जिसके उत्कृष्ट चाराराधना होती है क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है ? wwww आराधक विराधक की गति--3 अणारंभा, अपरिहा, धम्मिया, धम्माया धम्मिट्ठा धम्मलाई लोई, धम्मपलाजणा, धम्यापारा मेव विकिपेाणा, सुया, सुपडियानंदा साहू www उ-योम ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य चारिवाराधना होती है । जिसके होती है, उसने नियम से उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है । १. सध्या पाणाडवायाओ पडिविरया । २. साओ साओ पतिविरया । . सध्याओ अविण्णादाणाओ पडिविरया । १ पडिकासामितिहि विराहणाई, तं जहा --- १. जाणवि राणाए विराधना के प्रकार ३११. विराधना तीन प्रकार की कही गई है। यथा(२) दर्शवधन (१) ज्ञानविना (३) भारि विराधना आराधक अनारम्भ- अणगार ३१२. ग्राम, आकर - यावत् सनिवेश में जो ये मनुष्य होते हैं, यथा 1 आरम्भ रहित, परिग्रह रहित, धार्मिक, धर्मानुगामी, धर्मिष्ठ, धर्म का कथन करने वाले धर्म का अवलोकन करने वाले धर्मप्ररंजन, धर्मसमुदाचार, धर्मपूर्वक जलाने वाले सुशील, सुव्रत, स्वात्मपरितुष्ट होते हैं । (१) सब प्रकार की हिंसा प्रतिविरत होते हैं। असे प्रतिविरत होते हैं। (२) (३) सर्व चोरी से प्रतित होते हैं। २. सदराहणाए २. परिवराहचाए। - आव. अ. ४ सु. २२ ( ५ )
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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