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निर्ग्रन्यको तुय्यायें 3
संयम का उपदेश तथा विशिष्ट चर्याएं--६
निर्ग्रन्थ को दुःख शय्याएँ९६. चार दुःख शय्या है(१) पहली दुआ
निवरस हवेज्जाओ
६६. चत्तारि बुहसेजजाओ पण्णत्ताओं तं जहा१. स खलु इमा पढमा वुहसेज्जा -
से मुं भविता अगाराम अणमारिय
पावणे संकिते करियते वितिगिच्छिते भेषसमावणे कलुस समावण्णे णिग्गंथ पावयणं णो सद्दहति णो पत्तियति णो एड. पाय असावेत असे मार्ग मर्ण उच्चाक्यं निजति पढमा दुहसेज्जा ।
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२. महासेना--- सेविता अगाराम अगरिय प
मेोतुरसति परस्स नाभमानाति पोलेलि परमेति अभिलसति परस्स लाभमासाएमाणे पीहेमाणे पत्येमाणे अभिसमाणे मण उवावयं नियच्छ विणिधातमावति बोचा दुहसेज्जा ।
२. हा
ताजा
से णं मुंडे भविता अगाराओ उपरि द माणुस्सर कामभोगे आसाएइ पीहेति पत्थेति अभिलसति दिये मास्कमोगे आसाएमा पोहेमाचे पत्मा अभिलसमाने मणं उच्चावयं विच्छति, विणिघात भावज्जति - तच्चा सेवा |
४. अहावरा उत्पा हसेज्जा
से णं मुंढे भवित्ता अगाराओ अनगारिय पथवडए, तस्स णं एवं भवति
जया पं अहमवाश्वासमावसामि तदाणम्हं संचार मण-गात गातुम्छोलाई नमामि जन्यभिच गं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पथ्यइए तप्यभिनं च णं अहं संवरण- परिमारमंग गातुन्डोलमा भी लभानि ।
से गं संवाहणं परिमद्दण-गाता भंग गातुच्छोलाई आसाएति पीहेति पति अनिलखलि
संयमी जीवन
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यह है
कोई व्यक्ति मुण्ड होकर अगार से अनगारत्व में प्रब्रजित होकर, निर्धन्य प्रवचन में शंकित, कांक्षित विचिकिति भेदसमापन, कलुष समापन्न होकर निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा नहीं करता प्रतीति नहीं करता, रुचि नहीं करता, वह निधन पर अद्धा करता हुआ, अतीति करता हुआ, अनि करता हुआ, मानसिक उतार-चढ़ाव और विनिधात को प्राप्त होता है।
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(२) दूसरी दुःखशय्या यह है
कोई व्यक्ति मुण्ड होकर अगार से अनगार में प्रश्नजित होकर अपने साथ (भिक्षा में लब्ध आहार आदि) से मन्तुष्ट नहीं होकर दूसरे के लाभ का आस्वाद करता है, स्पृहा करता है, प्रार्थना करता है, अभिलाषा करता है, वह दूसरे के लाभ का आस्वाद करता हुआ, स्पृहा करता हुआ, अभिलाषा करता हुआ, मानसिक उतार-चढ़ाव और विनिधात को प्राप्त होता है ।
(१) तीस
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कोई व्यक्ति मुण्ड होकर अगार से अनगारत्व में प्रब्रजित होकर देवताओं तथा मनुष्यों के काम-भोगों का आस्वादन करता है, स्पृहा करता है. प्रार्थना करता है, अभिलाषा करता है, वह उनका आस्वाद करता हुआ, स्पृहा करता हुआ, प्रार्थना करता हुआ, अभिलाषा करता हुआ मानसिक उतार-चढ़ाव और विभि घात को प्राप्त होता है ।
(४)
कोई व्यक्ति मुण्ड होकर आगार से अनवारत्व में होने के बाद ऐसा सोचता है
जब मैं गुहवास में नाम परिवर्तन-जन मात्राभ्यंग तेल आदि की मालिश, गोल्छाल स्नान आदि करता था पर जब से मुण्ड होकर अगार से अनगारत्व में प्रब्रजित हुआ है तब से संबाधन, परिमर्दन गावाभ्यं तदाग नहीं कर पा रहा है.
ऐसा सोचकर वह संबाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग तथा गात्रीरक्षालन का आस्वाद करता है, स्पृहा करता है. प्रार्थना करता है, अभिलाषा करता है,
से णं संवाहण परिमण गातभंग गातुच्छोलणाई बसाएमाणे वह सम्बाधन, परिवर्तन मात्राभ्यंग गात्रा का पीमा पालिसमा मणं उच्चार निछति आस्वाद करता हुआ स्पृहा करता हुआ, प्रार्थना करता हुआ, विविधतावज्जति चउरथा बुहसेज्जा । अभिलाषा करता हुआ मानसिक उतार-चढ़ाव और विनिघात को - ठा. अ. ४, उ. ३, सु. ३२५ प्राप्त होता है ।