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धरणानुयोग-२
चार प्रकार के आवश्यक
सूत्र २१६
(३) जाणगसरीर भवियसरीर वररित दवावस्सथ । (३) जायक्रोर मध्यवर व्यतिरिक्त द्रब्यावश्यक । . प.-से कि त जाणगसरीर दवाबस्सय ?
प्र०-ज्ञायकशरीर द्रव्य आवश्यक क्या है ? उ०–जापगमरीर दवावस्सयं-"आयस्सए" ति पदत्था- उ.-जायकशरीर ध्यावश्यक-'आवश्यक' इस पद के
धिकार जाणगस्स जं सरोरयं ववमय चुत चावित अर्थ और अधिकार को जानने वाले के जीव रहित शरीर को नत्त देई, जीव विष्पजद, सेम्जागयं वा, संथारगयं शय्या पर. संस्तारक पर पड़ा देखकर या सिद्ध शिला पर देखवा, सिद्धसिलाललगयं वा पासित्ता णं कोइ भणेज्जा। कर कोई कहे कि-- "अहो 4 इमेणं सरीरसमुस्सएप जिगविढेणं "अहो इस शरीर से सर्वज्ञ प्ररूपित भावानुसार 'आवश्यक' भावेण "आवस्तए" ति पयं आधधियं, पणावियं, यह पद कहा, प्रापित किया. उसका अध्ययन कराया, दृष्टान्त पवियं, दंसिय, निसियं, उवदेसियं ।
द्वारा समझाया और उपदेश किया है।। प०-जहा को दिटुन्तो ?
प्र०-इस विषय में दृष्टान्त क्या है ? उ.- अयं महकमे आसी अयं घयभे आसी ।
उ०... यह मधु का कुंभ या, यह घृत का कुंभ था, ये
दृष्टान्त समझना । से तं जाणगसरीर वव्याबस्सयं ।
यह जायफशरीर द्रश्यावश्यक हुआ । प०-से कि तं वियसरीर दवावस्मयं ?
म०--भव्य शरीर द्रव्यावश्यक क्या है? उ०-भनियमावर पप्यानररावं-- जे जीवे जोणिजम्मण- उ.-भव्यशरीर द्रव्यावश्यक जो जीव योनि से जन्म
णिक्वते इमेणं चैव मरोरसमुस्साणं आदसएणं लेकर क्रमश: बकने वान शरीर को प्राप्त कर जिनकरित भावाजिणोदिठेणं भावेणं "आवस्सए" ति पयं रोयकाले नुसार मा बस्यक इस पद को भनिष्य में सीखेगा किन्तु वर्तमान में सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्लइ।
सीखता नहीं है। प०- जहा को दिद्वन्तो ?
प्र० -. इस विषय में क्या दृष्टान्त है ? उ. - अयं महुईभे गविस्तइ. अगं प्रयकुंभे भविस्राई । उ.. यह मधु का कुंभ होगा. यह घृत का कंभ होगा ये से तं भवियसरीर दवापरायं ।
दृष्टान्त समदाना । यह भव्यशरीर व्यावश्यक हुआ। प० - से कि तं जाणगारीर भनियसरीर दरिते दवा- H-जण्यकशरीर-भव्यशरीर न्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक वस्सए ?
क्या है ? 30 - जाणगसरीर-भषियसरीर वहरिते दथ्यावस्मए ज्ञायकशरीर भव्यगरीर व्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक तीन तिविधे पणत्ते, तं जहा
प्रकार का वाहा गया है, यथा(१) लोइए,
(१) लौकिक, (२) कुप्पावपणिए,
(२) कुप्रावनिक, (३) लोगुत्तरिए।
(३) लोकोत्तरिक । १०-से कि तं लोइयं दध्यावस्सयं ?
प्र०-लौकिक द्रव्यावश्यक क्या है ? उ० लोऽयं दवा यस्तयं इसे राईसर-तलवर-मानिय उ०-लौकिक भ्यावश्यक-जो ये राज्येश्वर, नगर रक्षक,
कोडबिय-इस्स-लेटि-सेणावइ-सत्यवाहप्पमितिओ-कल्लं सीमा रक्षक, ग्राम रक्षक, धनी, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि पाउप्पभायाए रयणोए सुधिमलाए फुल्लुप्पल-कमल प्रातःकालीन प्रभायुक्त निर्मल रजनी में कोमल उत्पल कमल कोमलुम्मिल्लियम्मि अहापंडरे पभाए रत्तासोगप्पगास- पुष्प सिले हुए पाण्डुवर्ण प्रभात में रक्त, अशोक, किंशुक, सुककिसुय-मुयमुह-गुंजकुरागसरिसे कमलागर-नलिणि- मुख तथा गुजार्ध मदृश, रक्त कमस समूह एवं नलिनी को संडबोहए, द्वियम्मि सरे सहस्वरस्सिम्मि विषयरे विकसित करने वाले, लेज से जाज्वल्यमान, सहस किरण तेया जलने मुहबोयण-दंतपक्वालण-तेल्त-कणिह दिनकर (सूर्य) के उदय होने पर मुंह धोकर दन्त प्रधानन कर सिद्धत्थय-हरियालिय-उद्दाग-धूव-पुष्फ-मल्ल-गंध-तंबोल आरीसे को सामने रखकर शिर में तेल मल कर, कंधे से केश