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वरणानुयोग-२
तेतीस प्रकार के स्थानों का प्रतिक्रमण पूत्र
सूत्र २३०-२३१
णाए, दुप्पमज्जणाए, अइएकमे, वाकमे, अइयारे, अणायारे, करने से, अच्छी तरह प्रतिलेखन न करने से, प्रमार्जन न करने जो मे देवसिओ यारो को तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। से, अच्छी तरह प्रमार्जन न करने से, जो अतिक्रम, व्यतिक्रम,
-आव. अ.४, मु. १९ अतिचार या अनाचार सम्बन्धी जो भी देवसिक अतिचार लगा
हो उसका दुष्कृत मेरे लिए मिथ्या हो । तेत्तीसविह ठाणाई पडिक्कमण सुतं
तेतीस प्रकार के स्थानों को अतिक्रमण सूत्र२३१. पडिक्कमामि एगविहे असंजमे ।
२३१. एक प्रकार के असंयम से निवृत्त होता हूँपटिक्कामि दोहि अंधणेहि---
दो प्रकार के बन्धनों से लगे दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ-- (१) रागबंधणेणं, (२) दोसबंधणे
(१) राग के बन्धन से, (२) द्वेष के बन्धन से । (१) पडिस्कमामि तिहि डेहि
(१) तीन प्रकार के दण्डों से लगे दोषों का प्रतिक्रमण
करता हूँ(१) मणवंडेणं, (२) अपडेण, (३) काजवंडेण । (१) मनोदण्ड से, (२। बसम-दण्ड से, (३) काय-दण्ड से। (२) परिक्कमामि तिहि गुत्तीहि--
(२) तीन प्रकार की गुप्तियों में जो भी दोष लगे हों, उनका
प्रतिक्रमण करता हूँ - (१) मणगुत्तीए, (२) वयगुत्तीए, (३) कायगुत्तीए । (१) मनोगुरित में, (२) वचनगुप्ति में, (३) कायगुप्ति में । (३) परिक्कमामि तिहि सल्लेहि
(३) तीन प्रकार के शल्यों से होने वाले दोषों का प्रतिक्रमण
करता हूं - (१) मायासल्लेणं, (२) नियाणसल्लेणं,
(१) मायाशल्य से, (२) निदान शल्य से, (३) मिच्छामणसस्लेणं ।
(३) मिथ्यादर्शन शल्य से । (४) पडिक्कमामि तिहिं गारवेहिं
(४) तीन प्रकार के गर्व से लगने वाले दोषों का प्रतिक्रमण
करता हूँ(१) इतोगारखेग, (२) रसगारवेणं,
(१) ऋदि के गर्व से, (२) रस के गर्य से, (३) सायागारवेणं ।।
(३) साता-सुख के गर्व से ।। (५) एडिक्कमामि तिहि विराहणाहि
(५) तीन प्रकार की विराधनाओं से होने वाले दोषों का
प्रतिक्रमण करता हूँ-- (१) गाणविराहणाए, (२) सणविराहणाए,
(१) ज्ञान की विराधना से, (२) दर्शन की विराधना से, (३) चरित्तविराहणाए।
(३) चारित्र की विराधना से । (१) परिक्कमामि चहि कसाएहि
(१) चार कषाय के द्वारा होने वाले अतिचारों का प्रति
क्रमण करता है(१) कोहकसाएग, (२) माणकसाएणं, (३) मायाकसाएग (१) क्रोध कषाय, (२) मान कषाय, (३) माया कषाय, (४) लोहफसाए।
(४) लोभ कषाय । (२) पशिफमामि चहि सणाहि
(२) चार प्रकार की संज्ञाओं के द्वारा जो भी अतिपार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ
१ सम, सम. २, सु. १
२ (क) ठाण. अ.३,उ.१, सु. १३४ (५) - ३ (क) ठाणं अ. ३, इ. १, सु. १३४ (१)
४ (क) ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १५८ ५ (क) ठाणं. अ. ३. उ. ४, रा. २१५ ६ सम, सग. ३. मु.१ ७ (क) ठाणं. अ. ४, उ. १, सु. २४६
(ख) सम, सम. ३, सु. १ (ख) सम. सम. ३. सु. १ (ख) सम. सम.., सु. १ (ख) सम. सम. ३, सु. १
(ख) सम. मम. ४, सु१