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चरगानुयोग -२
अतिक्रमादि की विधि
सूत्र २२०-२२३
तिविहे अणायारे पण्णते, तं जहा
अनाचार (पूर्ण प्रतिकुल आचरण) तीन प्रकार का कहा
गया है, यथा(१) णाणणायारे, (२) सणअणायारे,
(१) ज्ञान-अनाचार, (२) दर्शन-अनाचार, (३) चरितअणायारे। -ठाणं अ. ३. उ. ४, सु. १६८ (३) चारित्र-अनाचार।। अइकम्माईणं विसोही
अतिक्रमादि को विशुद्धि२२१. तिहमइक्कमाणं आलोएज्जा, पडिक्कमेग्जा, णिवेज्जा, २२१. तीन प्रकार के अतिक्रमों की आलोचना कर, प्रतिक्रमण
गरहेज्जा, विजट्टेउजा, विसोहेज्जा, अकरणयाए करे, निन्दा करे, गहीं करे, पाप से निवृत्त होवे, विशुद्धि करे, असमुज्जा , अहारिहं तबोकम्मं पायच्छित्तं पडिबज्जेज्जा, पुनः पैसा नहीं करने का संकल्प करे, यथोचित तप रूप प्राय तं जहा
श्चित्त स्वीकार करे । यथा - (१) गाणातिक्कमस्स, (२) सणातिकमस, (१) ज्ञानातिकमण की, (२) दर्शनातिक्रमण की, 11 पारितालिकामारा।
(३) चारित्रातिक्रमण की, सिहं बदमकमाण-आलोएज्जा-जाब-अहारिहं तवोकम तीन प्रकार के व्यतिकमों की आलोचना करे--यावत्पायच्छित पडिवग्जेज्जा, तं जहा
यथोचित सप रूप प्रायश्चित्त स्वीकार करे । यथा(१) णाणवहरकमस्स, (२) सणवइक्कमस्ल, (१) ज्ञान-व्यतिक्रमण बी, (२) दर्शन-व्यतिक्रमण की, (३) चरित्तषइक्कमस्स ।
(३) पारित्र-व्यतिक्रमण की। तिहमतिचाराणं-आलोएज्जा-जाव-अहारिहं तबोफम्म तीन प्रकार के अतिचारों की आलोचना करे—यावत्पायच्छित्तं परिवज्मेम्जा, तं जहा
यथोचित सपरूप प्रायश्चित्त स्वीकार करें । यथा(१) णाणातिचारस, (२) सणातिधारस्त, (१) ज्ञानातिचार की, (२) दर्शनातिचार को, (३) चरितातिचारस्स।
(३) चारिमातिचार की। तिहमणायाराण-आलोएज्जा-जाव-अहारिहं तवोकम्म तीन प्रकार के अनाचारों की आलोचना करे-यावतपायच्छित पतिवज्जेज्जा, तं जहा
यथोचित तपरूप प्रायश्चित्त स्वीकार करे । यथा(१) णाणअगायारस्त, (२) दंसग-अणायारस्स, (१) ज्ञाना-अनाचार की, (२) दर्शन-अनाचार की, (३) परित्त अणापारस्स !- ठाणं. अ. ३, उ. ४. सु. १६८ (३) चारित्र-अनानार की।
श्रमण प्रतिक्रमण-३
काउस्सग-करण पइण्णा
कायोत्सर्ग करने की प्रतिज्ञा२२२. आवस्सही इच्छाकारेणं संदिसह भगवन् !
२२२. हे भगवन् ! मुझे आज्ञा प्रदान करें, देवसी परिक्कमपं ठाएमि.
मैं दिवस सम्बन्धी प्रतिक्रमण (आवश्यक) करने की इच्छा
रखता हूँ और वेवसी पाण-सम-चरित्त-तक-अइयार चितणस्थं करेमि ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप के दिवस सम्बन्धी अतिचारों काउसग्ग।
-सुत्तागमे. आव. अ. १, स. १ का चिन्तन करने के लिए कायोत्सर्ग करना चाहता हूँ। सामाइय सुतं
सामायिक सूत्र-- २२३. करेमि मंते ! सामाइयं सव्वं सावज जोगं पञ्चपयामि, २२३. भन्ते ! मैं सामायिक ग्रहण करता हूँ। सर्व सावद्य (पाप
कम वाल) व्यापारों का त्याग करता हूँ।