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सूत्र २१८ २२० पाँच प्रकार के प्रतिक्रमण
संयमी जीवन [३ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
प्रतिक्रमण के प्रकार-२
पंचविहे पक्किमणे
पाँच प्रकार के प्रतिक्रमण२१८: पंचविहे पडिक्कमणे पणत्ते, त जहा --
२१८. प्रतिक्रमण पाँच प्रकार का कहा गया है। यथा(१) आसबदारपडिपकमणे.
(१) प्राणातिपात आदि आथवों से आत्मा को निवृत्त
करना। (२) मिच्छत्तपडिक्कमणे,
(२) मिथ्यात्व का परित्याग करना। (३) कसायपडिक्कमणे,
(३) कषायों से आत्मा को निवृत्त करना । (४) जोगपडिक्कमणे,
(४) मन-वचन-वाया को अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्त
करना । (५) भावपडिक्कमणे । -ठाणं. अ.५, उ. ३, सु. ४६६ (५) राग-द्वेष के भावों का परित्याग करना । छबिहे पडिक्कमणे
छह प्रकार के प्रतिक्रमण२१६. छविहे परिपकमणे पण्णत्ते, सं जहा
२१६. प्रतिक्रमण छह प्रकार का होता है(१) उच्चार-पजिक्कमणे,
(१) उच्चार प्रतिक्रमण-मल त्याग करने के बाद वापस
अररिकी सूत्रप्रतिक्रमण करना । (२) पासवण-पडिक्कमणे,
(२) प्रस्रवण प्रतिक्रमण-मूत्र-त्याग करने के बाद वापस
आकर ईपिथिकी सूत्र के द्वारा प्रतिक्रमण करना । (३) इत्तरिए पडिक्कमणे,
(३) स्वरिक प्रतिक्रमण-देवसिक, रात्रिक आदि प्रतिक्रमण
करना। (४) आवकहिय-परिषकमगे,
(४) यावत्वाधिक प्रतिक्रमण-हिंसा आदि से सर्वथा निवृत्त
होना अथवा आजीवन अनशन करना । (५) चिमिच्छा-परिवकमणे,
(५) यत्किचित् मिथ्यादुष्कृत प्रतिक्रमण - साधारण अयतना होने पर उसकी विशुद्धि के लिए "मिच्छामि दुक्कडं" इस भाषा
में खेद प्रकट करना । (६) सोमणतिय-पडिक्कमणे, -ठाण. अ. ६, सु. ५३८ (६) स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण-गोकर उठने के पश्चात् शय्या
दोष निवृत्ति सूत्र के द्वारा प्रतिक्रमण करना। अइक्कमाईणं पगारा
अतिक्रमादि के प्रकार२२०. तिविहे अइक्कमे पण तं जहा
२२०. अतिक्रम (प्रतिकूल आचरण का संकल्प) तीन प्रकार का
कहा गया हैं यथा(१) गाणअइक्कमे, (२) वंसणअइफमे, (१) ज्ञान-अतिक्रमण, (२) दर्शन-अतिक्रमण, (३) चरित्तअइक्कमे।
(३) चारित्र अतिक्रमण, तिविहे बहक्कमे पण्णते, तं जहा ..
ध्यतिक्रम (प्रतिकूल आचरण का प्रयत्न) तीन प्रकार का
कहा गया है यथा - (१) णाणवहमकमे, (२) दसणबइक्कमे,
(१) ज्ञान-व्यतिक्रमण, (२) दर्शन-व्यतिक्रमण, (३) चरित्तबइक्कमे ।
(३) चारिप-व्यतिक्रमण, तिविहे अइयारे पाणसे, तं जहा
अतिचार (आंशिक प्रतिकूल आचरण) तीन प्रकार का कहा
गया है, अथा(१) गाणअइयारे, (२) सणअइयारे,
(१) ज्ञान-अतिचार, (२) दर्शन-अतिचार, (३) चरितअइयारे ।
(३) चारित्र-अतिचार,