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पूष २४६-२४७
निवित्तिक (नीवी) प्रत्याख्यान भूत्र
संयमो जीवन
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१. मन्नत्पाणाभोयेणं, २. सहसागारेणं, ३. महत्तरागारेणं, अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययासम्बसमाहिबत्तियागारेणं गोसिरामि ।
__ कार, इन चार भागारों के सिवाय अभिग्रहपति तक चारों बाहार
--आव. अ. ६, सु. १.४ का त्याग करता हूँ। निम्बिगइया-पच्चक्वाण-सुतं
निर्विकृतिक (नीवी) प्रत्याख्यान सूत्र२४७. निविगहों एवलामि
२४७. निदिकृतिक तप स्वीकार करता हूँ, (१) अन्नत्यऽणाभोगेनं, (२) सहसागारेग, (१) मनाभोग, (२) सहसाकार, (३) लेवावे,
(४) गिहत्यसंस?णं, (३) लेपालेप, (४) ग्रहस्थ-संसृष्ट, {५) उक्वित्तविगेन, (६) पच्चममिक्षएणं, (५) उत्क्षिप्तविवेक, (६) प्रतीत्यप्रक्षित, (७) पारिद्वावनियागारेणं, (८) महत्तरागारेणं, (७) परिष्ठापनिकाकार, (८) महत्तराकार, (९) सध्यसमाहित्तियागारे, बोसिरामि ।
(E) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार, इन नी आगारों के सिवाय सब - आव. अ. ६, सु. १०५ प्रकार के विगयों का परित्याग करता हूँ।
१ (क) दिन में एक बार बिगय रहित आहार करना "निविकृति" (निबी-नीवी) तप होता है। (ख) मन में विकार उत्पन्न करने वाले पदार्थों को 'विगय' कहते हैं।
"मनसो विकृतिहेतुत्ववाद् विकृतयः" योगशास्त्र तृतीय प्रकाश सि ।
विकृति में दूध दही. मक्खन, घी, तेल, गुड, मधु आदि पदार्थ सम्मिलित हैं। २ दस प्रत्याख्यानों के १५ आगारों का विवेचन -
(१) अनाभोग-'अभी मेरे प्रत्याच्यान' है यह सर्वथा विस्मृत हो जाये और ऐनी स्थिति में भून से कुछ खा ले या पी ले तो यह अनाभोग बागार है। (२) सहसाकार अनिच्छा से कोई पदार्थ मुंह में चला जाय, यह सहसाकार आगार है, या-पानी, छाछ आदि के छीटें मुंह में चले जायें । अथवा कोई जबरदस्ती से मुंह में ढूंस दे या बलपूर्वक खिलावे तो यह भी सहसाकार आगार समझ सकते हैं। (३) प्रच्छन्नकाल-बादल आदि से सूर्य न दिखने पर पौरुषी का निश्चित काल ज्ञात न होने से पौरुषी के पूर्व प्रत्याख्यान पार लेवे तो यह प्रकछन्नकास आहार है। (४) दिशामोह-भ्रान्ति से पूर्व या पश्चिम दिशा का यथार्थ भान न रहे और पौरुषी न आने पर भी पौरुषी आ गई ऐसा मानकर पौरुषी का प्रत्यास्यान पार ले तथा स्वा ले पी ले तो यह दिशामोह आगार है। (५) साधु वपन-"पोरषी आ गई है" ऐसा साधु पुरुष के कहने पर पौरुषी आये बिना प्रत्याख्यान पार लेना--यह साधु वचन भागार है। (६) सर्व समाधि प्रत्यय बागार-ब तक समाधिभाव है तब तक प्रत्याख्यान है, प्राणघातक शूल आदि रोग निमित्तक असमाधि से प्रत्याख्यान पार लेना यह सर्वसमाधि प्रत्यय आगार है। (७) महत्तरागार-आचार्य आदि बड़े पुरुषों की आज्ञा से प्रत्याख्यान पार लेना, पह महत्तरागार है। (4) सागारिक आगार-एक आसन से एक बार भोजन करने का प्रत्याख्यान होने पर भी भोजन करते समय यदि कोई गृहस्थ आ जाए तो उठना पड़े और अन्यत्र जाकर भोजन करना पड़े तो यह सागारिक आगार है। (e) माचन-प्रसारण आगार-एकासन से भोजन करते हुए भी बैठे-बैठे पैर आदि शून्य हो जाए तो हाथ पैर आदि को फैलाना या सिकोड़ना पड़े तो यह आकुंचन-प्रसारण लागार है। (१०) गुरु-अभ्युस्थान भागार : एकासन से भोजन करते हुए यदि गुरुदेव आ जायें तो खड़ा होना और बाद में पुनः बैठकर भोजन करना, यह गुरु-अभ्युत्थान आगार है । (११) पारिष्ठापनिका आगार-यदा-कदा आहार गवेषक की असावधानी से या दाता के आग्रह से अधिक आहार आ जाए और आहार कर लेने के बाद भी जो शेष बन जाये तो सभी स्वर्मिक साधुओं को दे कदाचित् फिर भी शेष रह जाये तो स्थविर गुरुजनों की आज्ञा से प्रत्याख्यान वाला उस आहार का उपयोग करे --यह पारिष्ठापनिका आगार है।
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