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चरणानुयोग-२
चार प्रकार के आवश्यक
पूध २१५-२१६
अस्धेगव्या समणा निग्गंथा तेणेव मवरगहणं सिमंति युजति मुच्चति परिनिवाइति सन्वयुक्खागमत करति ।
अत्येगइया दुष्टयेणं भवामहणेणं-जाव-सम्वदुक्खाणमत करंति।
कितने ही श्रमण निन्य तो उसी भव से सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाण को प्राप्त होते हैं और सर्व दुखों का अन्त करते हैं।
कितने ही दो भन ग्रहण करके यावत् - सवं दुखों का अन्त करते हैं।
कितने ही तीन भव ग्रहण करके–पावत्-सर्व दु:खों का अन्त करते हैं । किन्तु उत्कृष्ट सात आठ भव ग्रहण का तो कोई अतिक्रमण नहीं करते हैं।
अत्य ण तच्चेणं भवग्रहणेणं-जाब-सअनुस्खाणमंतं करंति । सत्तट्ट भवग्गहणाई पुण नाइक्कमति ।
-दसा. द. ८, मु. ७६
प्रतिक्रमण-४
आवश्यक स्वरूप-१
चउबिहे आवस्सए
गार कारोबालश्यक२१६.५०-से कि तं आवस्सयं?
२१६. प्र०-आवश्यक कितने प्रकार के कहे गए हैं। 10--आवस्सयं चउम्विहं पण्णतं, तं जहा
उ०-आवश्यक चार प्रकार के कहे गए हैं-यथा(१) नामावस्सयं, (२) ठवणावस्सयं,
(१) नाम आवश्यक, (२) स्थापना आवश्यक, (३) दवावस्सयं, (४) भावावस्सयं ।
(३) द्रव्य आवश्यक, (४) भाव आवश्यक । पा-से कितनामावस्सयं?
प्र०-नाम आवश्यक क्या है? उ.--नामावस्सयं जस्स पं जीवस्स था, अजीवस्स बा, उ.-नाम आवश्यक-जिस जीव का या अजीव का,
जीवाण बा, अजोवाण वा, तबुभयस्स वा, तवुभयाण जीवों का या अजीवों का जीवाजीव का या जीवाजीवों का
बा 'आवस्सए' सिनामं कोरए । से तं नामावस्मयं। "आवश्यक" नाम किया गया है। वह नाम आवश्यक है। प-से कि तं ठवणावस्मयं ?
-स्थापना आवश्यक क्या है? उ.-रावणावस्सयं जगणं कट्टकम्मे वा, चितकम्मे वा, उ.-स्थापना आवश्यक-किसी काष्ठ की पुतली में,
पोत्यकम्मे वा, लेप्पकम्मे था, गंधिमे वा, बेडिमे वा, चित्र में, पुस्तक में, मिट्टी आदि के लेप से बनी हुई, मुंथी हुई, पूरिमे वा, संघाइमें वा, अक्खे वा, वराइए या, एमो वस्त्रादि लपेट कर बनाई हुई, पूरित की हुई, संग्रहित को हुई या, अणेगा चा, सम्मावठषणाए वा, असम्भावठवणाए आकृति में, अक्ष में, कौड़ी में, एक या अनेक पदार्थ की सदभाव वा 'आवस्सए प्ति ठेवणा ठविज्जति । रोतं ठवणा- या असद्भाव स्थापना से "आवश्यक" इस नाम की स्थापना की वस्सयं।
गई हो-वह स्थापना आवश्यक है। प.-नाम-उवणाणं को पहविसेसो ?
प्र-नाम और स्थापना में क्या अन्तर है? ज-नाम आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होना, उ.- नाम यावज्जीवन के लिए होता है और स्थापना आवकहिया वा।
अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक भी होती है। प०-से कि तं दवावस्मयं ।
प्र-द्रव्य आवश्यक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ-वव्यावस्सयं दुषिह पण्जतं, तं जहा
उ०-द्रव्य आवश्यक दो प्रकार के कहे गए हैं-यथा(१) आगमतो य.
(१) आगम से दब्यावश्यक और, (२) नाआगमतो य1
(२) नोआगम से द्रध्यावश्यक ।