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धरणानुयोग -२
सं सेवमाणे आवश्यक बाउम्बासिय परिहारद्वाणं उत्पाद - नि. उ. १२. सु. १२
सोलसमं गिही निसेज्जा वज्जणं' ठाणं१२६. गोयग पविस निसेज्जा जस्स करवई । इमेरिसमापार बाज अहि ॥ दिवस मंचनेरस्त पाणा अवहे वही । पिटिकोटो अगारिण 11
अगुती प्रेमरस, इत्थोओ यानि संकणं । सीमवर ठाणं दूरओ परिवञ्जए ॥
- दस. अ. ६, गा. ५७-५६
गोवरगापविट्टो उ, न निसीएज्ज कत्थई । कहना चट्टान व संजए ॥
- दम. अ. ५, उ. २, ग्रा.
अंतरगि मिसेज्जाए अथवाओ
१३०. नो कम्पनियाणं वा निग्गंीण वा-अंतरहिंसि
(१)
(११) पासवणं चा
(१३) सिघाणं वा परिवेत्तए
(१४) सायं याकरित
वा
(२) ना
(३) तुर्यात्तिए वा
(४) निहाइत्तए वा
(५)
(६) असणं वा
(७) पानं वा
(e)
वा
(e) साइमं या आहार माहरि (१०)
(१२) वा
(१५) माणं या साइत ए.
(१६) कास या ठाणं ठाइत्तए । अह पुण एवं जाणेज्ज' बाहिए. जराजुण्णे, सवस्सी, दृश्यले, विले जावा एवं से कद अंतर गतिविट्टिए वा जाब काउसम्म वा ठाणं ठात्तए ।
it कप्पड़ निधाण वा णिग्गंधीण वा अंतरगिस जावचाहं वा पंचगाहं वा आइक्लिए वा विभवितए वा किट्टित्तए वा पवेद्दत्तए वा ।
एगनाए वा वागणं या एनए एसिलोण या से विमानो क्षेत्र अि
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भूष १२०-१२०
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उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित ) आता है।
सोलहवाँ गृह निषद्या वर्जन' स्थान -
१२२. भिक्षा के लिए प्रविष्ट सुनि गृहस्थ के घर में बैठता है तो वह इन अनाचार और दोपों को प्राप्त होता है ।
ब्रह्मचर्य व्रत का विहाण प्राणियों का अकाल में वध, अन्य भिशाचरों के अन्तराय और घर वालों को कोध उत्पन्न होना।
ब्रह्मचयं असुरक्षित होता है और स्त्री के प्रति शंका उत्पन होती है अतः गृहस्य के घर में बेडमा कुशीलवर्धक स्थान समझ कर मुनि इसका दूर से ही वर्जन करे ।
गोवरी के लिए या हुआ साधु कहीं मीन और खड़ा रहबार भी अधिक समय कथा वार्ता न करे ।
गृह निषद्या के अपवाद --
१३०. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को गृहस्थ के घर में, (t) gear, (२) बैठना, (२) सोना,
(४) निद्रा लेना, (६) अमन,
(५) चलेगा
(७) पान,
(५) श्रादिम
(2) स्वादिम आहार करन्दा, (१०) मल, (११) सूत्र. (१२) कार (१२) परिष्ठापन करना, (१४) स्वाध्याय करना, ( ५ ) ध्यान वरना (१५) कायम कर स्थित होना नहीं करता है।
यदि वह जाने कि जो भिक्षु व्याधिग्रस्त हो, वृद्ध हो, उपस्थी हो या न हो, नत हो, यह हो जाये या गिर पड़े तो उसे के ठहरना - यावत्- कायोत्सगं कर स्थित होना कल्पता है ।
निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को गृहस्थ के घर में चार या पांच गाथाओं द्वारा कथन करना, उनका अर्थ करना, धर्माचरण का कहना एवं विस्तृत विवेचन करना नहीं कल्पता है ।
किन्तु आवश्यक होने पर केवल एक उदाहरण, एक प्रश्नो तर एक गाथा या एक एलोक द्वारा कथन आदि करना कल्पता है । वह भी खड़े रहकर कथन करें किन्तु बैठकर नहीं ।
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लिष्टमा निखेजा जा पाई जाए अभिभूयरस वाहिस्त
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- दस. अ. ६, गा. ६०
इस गाया में अतियुद्ध
और तपस्वी इन तीन को अपवाद रूप में गृहस्वके पर में बैठने का विधान है किन्तु बृहत्कल्पसूत्र में दुर्बल और परिश्रान्त का अधिक उल्लेख है। जिनका समावेश व्याधिग्रस्त में समझा जा सकता है ।