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म १४६-१४६
मद्यादि सेवन का निषेध
संयमी जोवन
[५
तस्स पस्सह कल्लाणं, अगसाहपूइयं ।
अनेक साधुओं के द्वारा प्रशंसा को प्राप्त उस भिक्षु के कल्याण निजलं अत्यसंजन, किसहस्सं सुह मे ॥
को देखो-वह विपुल संयम गुणों से युक्त होता है। मैं उसके
गुणों का कथन करूंगा उसे मुझसे सुनो - एवं तु गुणप्येही, अगुणाणं च विवजओ।
इस प्रकार गुण की प्रेक्षा (आसेवना) करने वाला और अगुणों तारिसो मरणते वि, आराहेछ संवरं ॥
को वर्जने वाला, शुद्ध भोजी मुनि मरणान्तकाल में भी संवर की
आराधना करता है। आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो।
___ वह आचार्य की आराधना करता है और श्रमणों की भी। गिहत्या वि णं पूर्वति, जेण जागंति तारिस ।
गृहस्थ भी उसे शुद्ध भोजी मानते हैं, इसलिए उसकी पूजा -स. ब. ५, उ, २, गा.३६-४५ करते हैं। मज्जाइ सेवण-णिसेहो
मद्यादि सेवन का निषेध१४७. अमज्ज-मंसासि अमच्छरिया, अभिक्षणं निविगईगया य। १४७. साधु मद्य और मांस का अभोजी हो, अमरमरी हो, वारअमिक्खणं काउसगकारी. समायजोगे पयओ हवेकजा ॥ बार विकृतियों को सेवन न करने वाला हो, बार-बार कायोत्सर्ग
- दस, अ.१०, च.२, गा.७ करने बाजा और स्वाध्याय के लिए योगोबहन में प्रयत्नशील हो।
दिवस रात्रिक समाचारी-१
समायारो महत्तं१४८. सामापारि पवपखामि, सम्बदुक्खविमोक्पणि । जं चरित्ताण निगथा, तिष्णा संसार सागर ।।
-उत्त. अ.२६, गा.१ बसविहा समायारी१४६. पक्षमा आवस्सिया नाम, बिया व निसीहिया।
आपुच्छणा 4 तइया, घउत्थी परिपुच्छणा । पंचमी छन्वणा नाम, इच्छाकारो प छटुओ। सत्तमो मिच्छकारो य, तहक्कारो य अट्ठमो ॥ अग्मुट्ठाणं च नवम, दसमो उपसंपदा । एसा बसंगा साहणं सामायारो पवेइया ।'
-उत्त. अ. २६, गा. २-४
समाचारी का महत्त्व-- १४८. मैं सब दुःखों से मुक्त करने वाली उस समाचारी का निरूपण नारू गा, जिसका आचरण कर अनेक निधन्थ संसारसागर से तिर गये। सागर से तिर गय । दस प्रकार की समाचारी१४६. पहली आवश्यकी, दूसरी नैषेधिकी,
नीसरी आपृच्छना, चौथी प्रति-गृच्छना है। पाँचबी छन्दना, छठी इच्छा कार, सातवीं मिध्याकार, आठवीं तथाकार । नौंवी अभ्युत्थान, दयीं उपसम्पदा,
ज्ञानियों ने यह दा प्रकार की साधुओं की समाचारी कही है।
दस प्रकार की समाचारी, उत्तराध्ययन अ. २६, गाथा २-३-४, स्थानांग अ. १०, सूत्र ७४६, भगवती श, २५, उ.७, सूत्र १९४
स्थानांग और भगवती में नाम और कम समान है अतः भगवती और उत्तराध्यगन की तालिका दी जाती है:उत्तराध्ययन सूत्र
भगवती सूत्र (१) आवश्यकी
(४) आवश्यिकी (२) नषेधिकी
(५) नैधिकी, (३) आपुच्छणा
(६) आपुच्छणा (शेष टिप्पण अगले पृष्ठ पर)