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सूत्र १५१-१५५
पौरवी विज्ञान
संयमी जीवन
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दिवसस्स चउरो भागे, कुजजा भिक्खू वियक्तणो ।
विचक्षण भिक्षु दिन के चार भाग करे। उन चारों भागों में तो उत्तरगुणे कुज्जा, दिणभागेसु चउसु वि। स्वाध्याय आदि उत्तरगुणों की आराधना करे । परम पोरिसिं समायं, यो माणं शियायई ।
प्रथम प्रहर में स्वाध्याय और दूसरे प्रहर में ध्यान करे । तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीए समायं ।। तीसरे प्रहर में भिक्षाचरी और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे।
- उत्त. अ. २६, गा. ८.१२ पोरिसी विष्णाणं
पौरुषो विज्ञान१५२. जासाठे मासे दुपया, पोस मासे चउपया।
१५२. आषाढ़ मास में दो पाद प्रमाण पौष मास में पार पाद चित्तासोएसु मासेसु, तिपया हबइ पोरिसी ॥ प्रमाण, चैत्र तथा आश्विन मास में तीन पाद प्रमाण छाया होने
पर पौरुषी होती है। अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्वेणं य यंगुलं ।
सात दिन रात में एक अंगुल, पक्ष में दो अंगुल और एक वढए हायए वावी, मासेणं चउरंगुलं ॥
मास में चार अंगुल वृद्धि और हानि होती है। (श्रावण माम से -उत्त. अ, २६, गा. १२.१५ पौर तक वृद्धि और माघ से आषाड़ तक हानि होती है।) छ ओमरत्ताओ
छः क्षय तिथिया१५३. छ ओमरता पण्णता, तं जहा -
१५३. छह अवमरात्र (क्षय तिथियाँ) होते हैं, यथा(१) ततिए पन्ये,
१. तीसरे पर्व-आषाढ़ कृष्णपक्ष में, (२) सत्तमे पव्वे,
२. सातवें पर्व-भाद्रपद कृष्णपक्ष में, (३) एक्कारसमे पव्वे,
३. ग्यारहवें पर्व -कार्तिक कृष्णपक्ष में, (४) पण्णरसमे पच्चे,
४. पन्द्रहवें पर्व-पौष कृष्णपक्ष में, (५) एणवीस इमे पव्वे,
५. उन्नीसवे पर्व-फाल्गुन कृष्णपक्ष में, (६) तेवीसदमे पवे । --ठाणं. अ. ६, सु. ५२४ (क) ६. तेईसवे पर्व-वैसाख कृष्णपक्ष में, छ अतिरत्ताओ -
छ: वृद्धि तिथियाँ१५४. छ अतिरत्ता पण्णता, तं जहा
१५४. छह अतिरात्र (वृद्धि तिथियाँ) होती हैं, यथा(१) चउत्थे पनवे,
१. चौथे पर्व-आषाढ़ शुक्लपक्ष में, (२) अटुमे पब्वे,
२. आठवें पवं-भाद्रपद शुक्लपक्ष में, (३) बुवालसमे पटवे,
३. बारहवें पर्व-कार्तिक शुक्लपक्ष में, (४) सोलसमे पडवे,
४. सोलहवें पर्व-पौष शुक्लपक्ष में, (५) बीसइम पध्वे,
५. बीसवें पर्व--फाल्गुन शुक्लपक्ष में, (६) चउवोसइमे परखे। - ठाणं. अ. ६, सु. ५२४ (ख) ६. चौबीसवें पर्व-साख शुक्लपक्ष में, पत्त-पडिलेहणा कालो
पात्र-प्रतिलेखना का काल१५५. जेट्टामूले आसाद साबणे, छह अंगुलौह पजिलेहा । १५५. ज्येष्ठ, आषाढ़, थावण इस प्रथम विक में छह अंगुल, अहि बीय तियंमी, तइए दस अट्टहि चजत्थे । भाद्रपद, आश्विन, कातिक इग द्वितीय त्रिक में आठ अंगुल,
-उत्त. अ. २६, गा. १६ मृगशिर, पौष, माघ इस तृतीय त्रिक में दस अंगुल और फाल्गुन,
पत्र, वैशाख इस चतुर्य त्रिक में आठ अंगुल पीरूपी के माप में वृद्धि करने से पौन पौरुषी (अर्थात् पान-प्रतिलेषगा) का समय होता है।
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उत्त. अ.२६, गा.१५ ।