________________
७४ | चरणामुयोग : प्रस्तावना
आचार सम्बन्धी कठोरतम नियम स्थिर नहीं रह सके हैं। अतः २. अनुयोगो-व्याख्यानम् । पृ. ३५४/१ आपबादिक रूप में कई अकरणीय कार्यो का करना भी विहित ३. अनुरूपो योगः अनुयोगः, सूत्रस्य अर्थन सार्द्ध अनुरूप मान लिया गया है जो सामान्यतया निन्दित माने जाते थे। सम्बन्धो, व्याख्यानमित्यर्थः । पू. ३५५/२२ अपवाद मार्ग के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा निशीय भाष्य एवं ४. आर्य वजाब यावत् अपृथक्त्वे सति "सूत्र व्याख्या रूपः" निशीथ पूणि आदि में उपलब्ध है। साथ ही पं० दलसुखभाई एकोप्यनुयोगः क्रियमाणः प्रतिवं चत्वारि द्वाराणि भावते: मालवणिया ने अपने ग्रन्थ "निशीथ एक अध्ययन में एवं चरणकरणादोश्चतुरोऽपि अर्थात् प्रतिपादयति इत्यर्थः। पृथमत्वाउपाध्याय अमरमुनिजी ने निशीथ चूणि के तृतीय भाग की नुयोगकरणावेव व्यवछिन्नः। ततः प्रति एक-एक चरणकरणाभूमिका में इसका विस्तार से विवेचन किया है । जिज्ञासु पाठक दोनामन्यतरो अर्थः प्रतिपूत्र व्याख्यायते, न चत्वारोऽमि इत्ययः । उसे वहां देख सकते हैं। निशीश्च सूत्र हिन्दी विवेचन में भी ५. अनुयोगो-अर्थ व्याख्यानम् । प. ३५८/२ पंक्ति १-२ उत्सर्ग अपवाद का स्वरूप ममझाया गया है।'
५. अध्ययनार्थकथन विधि: अयोगः । "अनुयोग द्वार" "अनुयोग" विश्लेषण एवं प्रस्तुत कृति।
शब्द दो प्रकार के होते हैं-(१) योगिक, (२) रू । १७. हास्पद मागिय मनुषंगार्थ व्याख्यानार्थ
उनमें से कई शब्दों के अनेक अर्थ होते है, भिन्न-भिन्न देश द्वाराणि इति अनुयोग द्वाराणि । काल में भिन्न-भिन्न अर्थ प्रसंगानुसार प्रचलित रहते हैं। किन्तु अणुयोगदारराई, महापुरस्सेव तस्स पतारि । प्रयोग कर्ता के आगय के अनुसार एक अर्थ प्रमुख रहता है। ___ अणुयोगो ति सदस्यो, दाराई तस्स उ महाई॥ तदनुसार अनुयोग शब्द के भी दो अर्थ अपेक्षित हैं
"अणुओगहार" प. ३५८/२ (१) सूत्र के अनुकूल अर्थ का योग करना,
६. संहिताय पदं बेव, पयत्थो, पदविग्गहो। (२) एक-एक विषय के अनुस्य (सदृश) विषयों का योग चालगाय पसिनो य, छव्विहं विडि लगवणं ।। करना अर्थात् वर्गीकृत संकलन करना।
पृ. ३५५/१६ । प्रस्तुत संकलन में दूसरे अर्थ को अपेक्षित करके संकलन १०.सं अनुयोगो यपि अनेक प्रन्य विषयः संभवति किया गया है जिसका आधार निम्न प्रयोग है
तथापि प्रतिशास्त्रं प्रति अध्ययनं, प्रति उद्देशक, प्रति वाक्यं, (१) द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग, धमकथानुयोग; गणितानुयोग । प्रति पर्व च उपकारित्वा प. १५९/१ अनुयोगद्वार टीका। (२) दृष्टिवाद का एक विभाग-अनुयोग ।
११. "अनुयोगिन"--अनुयोगो व्याख्यानम्, परूपणा इति (३) गणधर गण्डिकानुयोग, तपगडिकानुयोग आदि ।
यावत्, स यत्र अस्ति । अनुयोगी-आचार्यः, अगुयोगी, लोगाणं इन प्रयोगों से यह ज्ञात होता है कि जिसमें विवक्षित एक संसय णासओ व होति।। विषय का कथन हो या एक व्यक्ति का जीवन हो उसके नाम के अणुओगधर-अनुयोगिकः । माथ अनुयोग या गण्डिकानुयोग शध्द जोड़कर कहा जाता है। १२. अषणेगपर:-सिद्धारत व्याख्याननिष्ठः ।
आचारांग, उववाई आदि सूत्रों की टीका में कहे गये चार १३, नंदी सूत्र, गाथा ३२ टीका- मलयगिरीया-- अनुयोगों को आधारभूत मानकर प्रस्तुत कृति में सम्पूर्ण आगमों "कालिक तानुयोगिकान्".-कासिकश्रुतानिणेगे व्याख्याने को चार अनुयोगों में विभाजित किया गया है।
नियुकाः कालिकश्रुतानुयोगिकाः, तान् । अथवा कालिकतानुअनुपोग शब्द की उपलब्ध व्याख्याएँ
योग येषां विधत्ते इति कालिकतानुयोगिनः । अभिधान राजेन्द्र कोष के प्रथम भाग में अनुयोग शब्द के १४. अणुमओगे च नियोगी, भास विभाव य वत्तियं बेव। अनेक अर्थ एवं उनके प्रयोगों की विस्तृत व्याख्या पृ० ३४० रो एए अणुओगम्स उ नामा एमट्टिया पंच ।। ३६. तक है।
वृहत्कल्प भाष्य । कोष प. ३४४ .. कुछ अर्थ यहाँ दिये आते है
अणुओयणं अणओगो, सुयस्स नियएण जमभिएण । १. अणु-सूत्र, महान अर्थः, ततो महतो अबस्य अणुना सूत्रेण वावारो वा जोगणे, जो अणुसोओ अगुकूलो बा ॥ योगो अनुयोगः । पृष्ठ ३४०/२
१ पं. दलसुखभाई मालवणिया -"निशीय : एक अध्ययन" पृष्ठ ५३-७० । २ निशीथ सूत्र चूमि-तृतीय माग भूमिका पृष्ठ ७-२८ । ३ छेव सूत्र-पृष्ठ ७४-७५ आगम प्रकाशन समिति मावर ।