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घरणानुयोग-२
प्रव्रज्या पालक की चौभंगी
सूत्र १२३६-१३४०
प०. सोच्चा णं भंते ! केलिस्स वा-जाव-तप्पवित्रयउवा- प्र० -- भन्से ! केवली से- यावत् -केबलिपाक्षिक उपा.
सिस का केवल मुंजे भरिता अगाराओ अणगारियं सिवा से सुनकर कोई एक जीव मुष्टित होकर गृहस्थावास को पम्वएज्जा?
छोड़कर प्रवजित हो सकता है ? ज०-गोयमा ! सोच्चा णं केवलिस वा-जाव-तपक्खिय- उ..गौतम ! केबली से यावत्-केवनिपाक्षिक उपा
उवासियाए वा अत्येतिए केवल भविता सिका से सुनकर कोई एक जीव मुण्डित होकर गृहस्थावास को अगाराओ अणगारियं पवएज्जा, अत्येगतिए केवलं छोड़कर प्रव्रजित हो सकता है और कोई एक जीव मुण्डित होकर
मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं नो परुषएग्जा। गृहस्थावास को छोड़कर प्रबजित नहीं हो सकता है। प०---से केणठेणं मंते ! एवं बुताई
प्र.-भन्ते ! किस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है--
केवली से-यावत्- केवलिपाक्षिक उपासिका से सुनकर या अत्धेगतिए केवलं मुडे भविता अगाराओ अणगा- कोई एक जीव मुण्डित होकर गृहस्थावारा को छोड़कर प्रनजित रियं पध्वएग्जा, अत्यगतिए केवल म भवित्ता अगा- हो सकता है और कोई एक जीव मुण्डित होकर गृहस्थावास को राओ अणगारियं नो पश्चएग्जा?
छोड़कर प्रबजित नहीं हो सकता है ? To-गोग्रमा ! जस्स गं धम्मतराइयाणं कम्माणं खओषस में उ०—गौतम ! जिसके धर्मान्तराय कमों का अयोपशम
कडे भवइ से सोचा केवलिस्त वा-जाव-तप्पविषय- हुआ है वह कैश्वी से यावत्-केवलिपाक्षिक उपमिका से आवासियाए वा केवलं मुंडे भक्त्तिा अगाराओ अणगा- सुनकर मुण्ठित होकर गृहस्थावान को छोड़कर प्रवजित हो रिवं पश्यएज्जा।
सकता है। जस्स गं धम्मतराइयाणं कम्माणं खोयसमे नो को जिसके धर्मान्तराय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ है वह भवइ, से णं सोचा केलिस्स या-जाव-तप्पविषय- केवली से - पावत् – केबलिपाक्षिक उपासिका से सुमबार मुण्डित उवासियाए वा केवसं मुंडे भवित्ता अगाराओ अण- होकर गृहस्थावास को छोड़कर प्रवजित नहीं हो गवना है । गारियं गो पवएज्जा। से सेणठे गं गोयमा ! एवं स्वइ
गोलम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है किसोच्चा केवलिस्स वा-जाव-सप्पक्खियउवासियाए वा केबली सेय.व - केलिपाक्षिक उपासिका से मुनकर अत्येगहए केवल मुंडे मवित्ता अगाराओ अणगारियं कोई एक जीव मुण्डित होकर गृहस्थावान को छोड़कर प्रबजित पन्चएचजा । अत्धेगहए केवल मुंडे भवित्ता अगाराओ हो सकता है। कोई एक जीव मुण्डिस होकर गृहस्यावास को अणगारियं णो पब्बएग्जर।
छोड़कर प्रवजित नहीं हो सकता है। -वि.स., उ. ३१, सु. ३२ पव्वज्जा पालगस्स चउभंगो--
प्रवज्या-पालक को चौभंगी१३४०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा
१३४०. पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे(१) सीहताए णाममेगे णिक्वंते सोहत्साए विहरइ,
(१) कोई पुरुष सिंहवृत्ति से प्रत्रजित होता है और सिंह वृत्ति से ही विचरता है अर्थात संयम का दृढ़ता से पालन
करता है। (२) लोहताए णाममेगे णिक्वते सियालसाए विहरह, (२) कोई पुरुष सिंहवत्ति से प्रवजित होता है किन्तु शृगाल
वृत्ति से विचरता है, अर्थात् दीनवृत्ति से संयम का पालन
करता है। (३) सौयालत्ताए गाममेगे णिक्खंते सोहसाए विहरइ, (१) कोई पुरुष मालवृत्ति से प्रवजित होता है, किन्तु
सिंह्वत्ति से विचरता है, (४) सोयासत्ताए णाममेगे णिक्खते सीयालताए विहर। (४) कोई पुरुष शृगालवृत्ति से प्रभाजित होता है और
ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३२६ शृगालवृत्ति से ही विचरता है।