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चरणानुयोग-२
बड़ी दीक्षा के अयोग्य
सूत्र ६०६१
उवट्ठावणा अजोग्गा
बड़ी दीक्षा के अयोग्य६०. पुढविक्काइए जीवे, ण सद्दहइ जो जिणेहि पण्णत्ते । ६०. जो जिन-प्रज्ञप्त पृथ्वीकायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार भणभिगयपुण्णा-पावो, सो उबढायणा जोग्गो । की) थदा नहीं रखता है और पुण्य एवं पाप को नहीं जानता
है वह बड़ी दीक्षा के अयोग्य है। आउपकाइए जीवे, ण सदहाइ जो जिणेहि पण्णत्ते ।
जो जिन-प्रशप्त अपकायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार अभिगयपुग्ण-पावो, ग सो उवट्ठावणा जोगो ॥ की) श्रद्धा नहीं रखता है और पुण्य एवं पाप को नहीं जानता है
रबड़ी दीक्षा के अयोग्य है। तेउक्काइए जीवे. ण सहइ जो जिहि पण्पत्ते ।
जो जिन-प्रशप्त तेजस्कायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार अभिगयपुग्ण-पावो, सो उबट्टावणा जोगो ॥ की) श्रद्धा नहीं रखता है और पुण्य एवं पाप को नहीं जानता है
वह बड़ी दीक्षा के अयोग्य है। बाउक्काइए जीबे, ण सहहइ जो जिणेहि पण्णत्ते। ____ जो जिन-प्रज्ञप्त वायुकायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार अणभिगमपुण्ण-पायो, ण सो उबटविणा जोग्यो । की) श्रद्धा नहीं रखता है और पुण्य एवं पाप को नहीं जानता है
यह बड़ी दीक्षा के अयोग्य है। वणस्सइकाइए जोवे, ण सहइ जो जिणेहिं पण्णते।
जो जिन-प्रज्ञप्त वनस्पतिकायिक जीवों में (जीव है इस अणमिगयपुष्ण-पादो, सो उबट्टावणा जोग्यो ।। प्रकार की) श्रद्धा नहीं रखता है और पुष्प एवं पाप को नहीं
जानता है वह बड़ी दीक्षा के अयोग्य हैं। तसकाइए जीवे, ण सहइ जो जिणेहि पण्णसे।
जो जिन-प्रज्ञात अस कायिक जीवों में (जोव है इस प्रकार अभिगयपुग्ण-पावो, ण सो उपट्टावणा जोग्गो ।। की) श्रद्धा नहीं रखता है और पुण्य एवं पाप को नहीं जानता है
-दस. अ. ४, गा. १-६ वह बड़ी दीक्षा के अयोग्य है। अजोग्गस्स उबट्टावणपायच्छित्तसुत्तं
अयोग्य को बड़ी दीक्षा देने का प्रायश्चित्त सुत्र - ६१. जे भिक्खू णायगं बा, अणायगं वा, उवासगं था, अगुवास ६१. जो भिक्षु अयोग्य स्वजन को, परिजन को, उपासक को वा अणलं उवट्ठावेह उबट्ठातं वा साइज्जद।
और अनुपासक को बड़ी दीक्षा देता है, दिलाता है या देने वाले
का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जद्द चाउम्मासियं परिहारहाणं .मुघाइय। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. ११, सु. ५ आता है।