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परगानुयोग-२
विविध प्रकार की प्राण्या
सूत्र ५१-५२
प्रवज्या के प्रकार-२
विविधिहा पधज्जा - ५१. चउब्धिहः पवाजा परणता, तं महा--
(१) इहलोगपटियता, (२) परलोगपडिबडा, (३) बुहओलोगपडिया
(४) अप्पडिबद्धा ।
चउधिना पव्वज्जा एण्णता, सं जहा--- (१) पुरओ पडिवदा,
(२) मग्गो परिवता,
(३) बुहमो पडिया'
(४) अप्पडिबवा।
विविध प्रकार का प्रत्रग्या५१. प्रमज्या (निर्ग्रन्थ दीक्षा) चार कार को कही गई है। जैसे--
(१) इस लोक की सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या । (२) परलोक की सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या ।
(३) दोनों लोकों की सुख-कामना से ली जाने वाली प्रवज्या ।
(४) किसी भी प्रकार की कामना से रहित होकर ली जाने वाली प्रव्रज्या। गु
नार मार की कही गई है। जैसे(१) मनोज्ञ आहारादि की प्राप्ति के लिए ली जाने वाली प्रवण्या।
(२) परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ाने की कामना से ली जाने वाली प्रद्रज्या।
(३) उपरोक्त दोनों प्रकार की कामना से ली जाने वाली प्रत्रज्या ।
(४) उक्त दोनों प्रकार की कामनाओं से रहित होकर ली जाने वाली प्रज्मा।
पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है । जैसे(१) सद्-गुरुओं की सेवा से प्राप्त होने वाली दीक्षा । (२) दूसरों के कहने से ली जाने वाली दीक्षा । (३) परस्पर प्रतिज्ञाबद्ध होने से ली जाने वाली दीक्षा ।
(४) परिवारादि से अलग होकर देशान्तर में जाकर ली जाने वाली दीक्षा।
पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है। जैसे(१) कष्ट देकर दी जाने वाली दीक्षा । (२) अन्यत्र ले जाकर दी जाने वाली दीक्षा । (३) बातचीत करके दी जाने वाली दीक्षा । (४) स्निग्ध, मिष्ट भोजन कराकर दी जाने वाली दीक्षा। पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की वही गई है। जैसे---
(१) नट की तरह धर्मकथा कहकर आजीविका की जाने घाली प्रव्रज्या
(२) सुभट के समान बल प्रदर्शन कर आजीविका की जाने वाली प्रव्रज्या ।
(३) सिंह के समान दूसरों को भयभीत कर आजीविका की जाने वाली प्रवज्या।
अम्बिहा पठसज्जा एण्णत्ता, तं जहा(१) ओवाय-पषज्जा, (२) अक्वात-पवाजा, (३) संगार-पख्वाजा, (४) विगह-ाह-पवण्जा ।
चम्यिहा पम्यम्जा पण्णत्ता, तं महा(१) तुयावहता, (२) पुपावत्ता , (३) बुआवइत्ता, (४) परिपुयावत्ता। चविहा पाचज्जा पण्णता, तं जहा(१) गडखाया,
(२) भडसाइया,
(३) सोहखइया,
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ठाणं. अ. ३, उ. २, सु. १५५