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विषय
क्रोधविजय का फल
मान विजय का फल
माया विजय का फल
लोभ विजय का फल
अनाचार प्रायश्चित - १२
अधिक हँसने का प्रायश्चित्त सूत्र
शिल्पकलादि सिखाने का प्रायश्चित्त सूत्र
अपशब्द और कठोर वचन के प्रायश्चित्त सूत्र
आतिना का प्रायश्चित सूत्र
सचित गद्य सैंधने का प्रायश्चित्त सूत्र कौतुक कर्म का प्रायश्चित सूत्र भूति कर्म करने का प्रायश्चित्त सूत्र प्रश्नादि कहने के प्रायश्चित्त सूत्र लक्षण - व्यंजन स्वप्नफल कहने के प्रायश्चित सूत्र
विद्यादि का प्रयोग करने के प्रायश्चित्त सूत्र
मार्गादि बताने का प्रायश्चित्त सूत्र
धातु और निधि बताने के प्रायश्चित सूत्र अपने आपको आचार्य के लक्षण युक्त करने
का प्रायश्चित सूत्र
निमित्त कथन के प्रायश्चित्त सूत्र भयभीत करने के प्रायश्चित्त सूत्र विस्मित करने के प्रायश्चित सूत्र विपर्यासकरण प्रायश्चित्त
अन्यतीर्थिकों की प्रशंसा करने का
प्रायश्वित्त सूत्र स्वच्छन्दाचारी की प्रशंसा एवं वंदना करने
के प्रायश्चित्त सूत्र
संघ व्यवस्था १
तीर्थ का स्वरूप
तीर्थ प्रवर्तन का काल
जिन के प्रकार
केवली के प्रकार
अरिहन्त के प्रकार रात्निक पुरुषों के प्रकार
रात्निक इन्द्रों के प्रकार
स्थविर के प्रकार महाव्रत धर्म के प्ररूपक दुर्गम-सुगम स्थान
पाँच प्रकार के व्यवहार
अनुज्ञा के प्रकार
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संघ व्यवस्था
सूत्रांक पृष्ठाक
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४०६ १९८ ४०७ १९८ YOU १९९ ४०९ १९९ १९९
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१९९ ४१२ १९९ ४१३ १९९ ४१४ २००
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समनुज्ञा के प्रकार उपसम्पदा के प्रकार पद त्याग के प्रकार
तीन प्रकार से आत्म रक्षा
जलाशय जैसे आचार्य
आचार्य के प्रकार
शिव्य के प्रकार
विविध प्रकार के गण की वैयावृत्य करने वाले
आचार्य के अतिशय- २
आचार्य आदि के अतिशय
ऋद्धि के प्रकार
गणि-सम्पदा
आचार-सम्पदा
श्रुत-सम्पदा शरीर-सम्पदा
वचन- सम्पदा
वाचना सम्पदा मति सम्पदा प्रयोग-सम्पदा
संग्रह परिज्ञा सम्पदा
सात संग्रह असंग्रह स्थान
निर्ग्रन्थ पव व्यवस्था-४
आचार्य उपाध्याय पद योग्य निर्ग्रन्य
आचार्य उपाध्याय पद के अयोग्य निर्ग्रन्थ
एक पक्षीय भिक्षु को पद देने का विधान ग्लान आचार्यादि के द्वारा पद देने का निर्देश
संयम त्याग कर जाने वाले आचार्यादि के द्वारा पद देने का निर्देश पापजीवी बहुतों को पद देने का निषेध आचार प्रकल्प विस्मृत को पद देने का विधि-निषेध
अब्रह्मसेवी को पद देने के विधिनिषेध संयम त्याग कर जाने वालों को पद देने का विधि-निषेध
उपाध्याय पद देने के विधि-निषेध अनवस्थाप्य और पाराधिक भिक्षु की
उपस्थापना
आचार्य के नेतृत्व के बिना विचरने का निषेध
गणधारण करने योग्य अणगार गणधारण करने का विधि-निषेध
अग्रणी के काल करने पर भिक्षु का कर्तव्य
निर्गन्धी पद व्यवस्था-४
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