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०६ | चरणानुयोग प्रस्तावना
विषयों की विभिकता है। भगवती सूत्र पूरा विविध विषयों के प्रश्नोतर का संकलन है। उत्तराध्ययन सूत्र विभिष विषयों का गद्य-पद्यात्मक सूत्र है। निष्क यह है कि इस आगयों की रचना पद्धति भी विषय संकलन में एक विशेष विवला नावी है फिर भी विषयों के सूक्ष्म सूक्ष्मतर विभाजन की जिज्ञासा वालों को उनके अध्ययन में कठिनाई का अनुभव होना स्वाभाविक है। अतः प्रस्तुत अनुयोग विभाजन एक विशिष्ट विभाजन की पूर्ति के लिए किया गया है ।
गांग समवायांग का संकलन संख्या प्रधान है किन्तु उसमें किया है और तीस सूत्रों का ट पद्धति से विषयानुसार वर्गीकरण करके संयमी जीवन के पचास वर्षों में श्रुत की अनुपम सेवा की है। आपका यह कार्य जैन धर्म और जैन साहित्य के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आगमों के सन्दर्भ में यह ऐसा महान कार्य है जो विगत दो हजार वर्ष के जैन इतिहास में नहीं हो सका था। इस महान कार्य के लिए निश्चित ही जैन समाज, मुनि श्री जी का आभारी है। मुनि श्री ने न केवल यह वर्गीकरण का महान कार्य किया अपितु उन्होंने इसके साथसाथ शब्दानुसारी हिन्दी अनुवाद देकर उन लोगों का भी उपकार किया जो प्राकृत का ज्ञान न रखते हुए भी आगमों की विषयवस्तु को समझने के लिए उत्सुक हैं। मुनि श्री जी की यह ज्ञान साधना उनकी कीर्ति को अक्षुण्ण रखेगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
यद्यपि इस प्रकार के विभाजन की आवश्यकता प्राचीन समय में भी थी किन्तु ऐसा वर्गीकरण करने का साहस किसी ने भी नहीं किया। क्योंकि ऐसा करने से सूत्रों के अस्तित्व को नष्ट करने का भ्रमित वातावरण उपस्थित होने का भय था किन्तु इसमें सूषों का अस्तित्व नष्ट करना है और आगमों के मूल्य का ह्रास करना है अपितु आगमों की उपयोगिता बढ़ाना है।
मैं स्वयं भी व्यक्तिगत रूप से मुनि श्री जी का कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने इसकी भूमिका लिखने का निर्देश देकर मुझे आगमों के अध्ययन का एक और अवसर प्रदान किया। माथ ही उनसे इसलिए क्षमाप्रार्थी भी हूं कि प्रस्तुत भूमिका के लिए मैंने उन्हें पर्याप्त रूप से प्रतीक्षा करवाई । यद्यपि इसमें मेरे प्रमाद की अपेक्षा मेरी व्यस्तता व मेरी बाह्य परिस्थितियाँ ही अधिक बाधक रहीं, जिनके कारण मैं इसे शीघ्र पूर्ण न कर सका अन्त में पुनः सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूं, जिनका इस भूमिका लेखन में प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग रहा है ।
आगमों का स्वतन्त्र अस्तित्व भी अलग रह जाता है और विषयानुसार वर्गीवाजे पार अनुयोग रूप इन चार अनुपम ग्रन्थों का अलग महत्व भी स्पष्ट है ।
इस साहस पूर्ण और श्रम पूर्ण रत्न भुनि श्री कन्हैयालालजी म. सा.
कार्य को वर्तमान में पं० "कमल" ने स्वेच्छा से
डा० सागरमल जैन
निदेशक श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, (०२०)