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सवस्वरण : एक मौद्धिक विमर्श |
(४-५) वस्त्रं षणा पाषणा
या कभी मलोत्सर्ग करते समय उपयोग में लिया जाता है अथवा शरीर के संरक्षण हेतु रखे जाने वाले वस्त्रों की एवं कल्प- कमी उसको इंजे में बांधकर मकान के ऊंचे विभागों का शोधन नीय पात्रों की जाति का उल्लेख करके यह कहा है कि तरुण किया जाता है इसे औपग्रहिक उपकरण कहा गया है। स्वस्थ मुनि इनमें से एक-एक जाति के वस्त्र या पात्र ही धारण किन्तु रजोहरण साधु साध्वी के लिए अत्यावश्यक उपकरण करे। इस विषय में अर्थ भ्रम से संख्या की अपेक्षा एक ही वस्त्र है। उसके रखने का मुख्य हेतु जीव रक्षा एवं मुनि का चिन्ह है या एक ही पात्र के नियम की कल्पना की जाती है, जो गौतम जिनकल्पी अचेल साधुओं के लिए भी रजोहरण एक आवश्यक स्वामी के पात्र वर्णन या अन्य सूत्रों के पात्र वर्णन से मेल नहीं उपकरण है।
प्रस्तुत प्रकरण में पांच प्रकार के रजोहरणों का वर्णन करके ___वस्त्रों की और पात्रों की विविध गवेषणा विधियों का तत्सम्बन्धी अनेक विधानों को प्रायश्चित्त कथन के माध्यम से उल्लेख करने के साथ यह भी बताया गया है कि कभी दाता स्पष्ट किया गया है जिसमें रजोहरण के परिमाण का, उस पर बाद में आने का संकेत करे या आधाकर्मी आहार पानी युक्त बैठने सोने आदि के निषेध का, अविधि से बांधने का तथा सदा पात्र दे तो नहीं लेना । पूर्ण निर्दोष वस्त्र पात्र भी लेते समय अपने पास रखने का इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों का प्ररूपण अच्छी तरह प्रतिलेखन करके लेना । यहाँ दोनों प्रकरण में चार- हुआ है। चार विशिष्ट प्रतिज्ञाएँ दस्त्र पात्र के गवेषणा एवं धारण सम्बन्ध आदान निक्षेप समिति में कही है। अनावश्यक परिकम एवं विभूषा कृत्यों का निषेध इस प्रकरण में औधिक उपधि की संख्या और औपग्रहिक किया है। ठाणांग सूत्र में वस्त्र धारण करने के कारण कहे हैं उपकरणों के अनेक नाम सूचित कर उन उपकरणों को विहार
और व्यवहार सूत्र आदि में मर्यादा से अधिक वस्त्र, पात्र भादि गोचरी आदि में साथ रखने का कहा गया है। देने के और रखने के बापवादिक विधान है तथा उनके प्राय- स्थविरों के दण्ड छत्र उपानह आदि उपकरणों की चर्चा श्चित्तों का कथन है । आचारांग में वर्णित एक-दो या तीन वस्त्र भी यहाँ है। गिनती एवं माप से अमर्यादित उपकरण रखने का धारण करने की विशेष प्रतिज्ञा का उल्लेख करते हुए अचेल प्रायघियत्त कहा है। साधना का भी महत्वपूर्ण वर्णन किया गया है।
प्रतिलेखन का वर्णन करते हुए उसकी विधि एवं अनेक साध्वी के उपयोगी वस्त्र ग्रहणादि के उल्लेख भी अलग प्रमाद जनित दोषों का वर्णन किया गया है साथ ही प्रतिलेखन सूचित किये गये हैं । अकारण वस्त्र प्रक्षालन आदि का निषेध न करने वाले को प्रायश्चित्त का पात्र बताया है। करके सकारण धोए गये वस्त्रों को सुनाने के स्थलों की विचा• अन्त में ऊणोदरी आदि तप की अपेक्षा उपकरण के प्रत्यारणा की गई है । बहुमूल्य वस्त्र पात्रों का निषेध एवं प्रायश्चित्त ध्यान का फल बताया है । साय ही किसी साधु का खोया हुभा के साथ, चर्म धारण सम्बन्धी आपवादिक विधानों की चर्चा भी उपकरण मार्ग में किसी साधु को मिल जाय तो क्या करता
चाहिए इसका विवेक कहा गया है। जीव रक्षा आदि हेतुओं से वस्त्र की चिलमिलिका-मच्छर- उच्चार-प्रस्रवण समिति दानी रखने का उल्लेख है। अन्त में अनेक प्रायश्चित्तों का यहां परठने योग्य पदार्थों का, परठने योग्य सदोष निदोष संकलन है।
__ स्थानों का और स्थंडिल के दस गुणों का कथन किया गया है (६-७) आगमो में प्रादपोंछन और रजोहरण ये दो अलग- साथ ही उच्चारादि परदने की भूमि से सम्पन्न मकान में ठहरने अलग उपकरण कहे हैं । उनके विभिष्ट उपयोगों का विधान है। का विधान किया है। फिर भी कभी कहीं सूत्रों में प्रयुक्त पादपोंछन का अर्थ रजोहरण आचारांग में इस विषय का स्वतन्त्र अध्ययन है उसके करने का भ्रम उत्पन्न होता है जिसमें लिपि प्रमाद आदि का आधार से एवं निशीथ सूत्र के तीसरे, चौथे प्रादि उद्देशकों के कारण ही प्रमुख है।
आधार से अनेक अकल्पनीय स्थलों का वर्णन करने के साथ यह निशीथ' सूत्र में भी दोनों उपकरणों के भिन्न-भित्र प्रायश्चित्त भी बताया गया है कि किस विधि से मलोत्सर्ग करना तथा मल कहे गये हैं और प्रश्नव्याकरण सूत्र में साधु के उपकरणों का द्वार की शुद्धि करना । संकलित कथन है उसमें भी दोनों नाम अलग-अलग हैं और आचारांग एवं निशीथ के सूत्रों से उच्चार मात्रक में मलोटीकाकार ने उन्हें अलग-अलग गिन कर उपकरणों की निश्चित सर्ग करने की विधि भी बताई गई है। अन्त में उनके अनेक संख्या सूचित को है।
प्रायश्चित्तों का विधान है। पाद प्रोछन एक वस्त्र खण्ड होता है जो कभी पाँव पोंछने में