Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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उपलब्ध हो सके और साथ ही उन महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन भी हो सके जिनका प्रकाशन आज तक नहीं हुआ है। इसके लिये आप की प्रेरणा व मंगलमय शुभाशीर्वाद से जयपुर ( राजस्थान) में वर्ष 1981 में बाहुबली सहस्त्राभिषेक महोत्सव के शुभावसर पर श्री दिगम्बर जैन कुंथु विजय ग्रंथमाला समिति की स्थापना की गई। आपने अनेक ग्रंथ लिखे। जो ग्रंथ अन्य भाषाओं में थे उनका अनुवाद कर टीकाएँ की । इस ग्रंथमाला से अन्य छोटे-छोटे विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों के अलावा 18 महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन हो चुका है और 19 वें ग्रंथ का विमोचन आज हो रहा है। ग्रंथमाला समिति द्वारा प्रकाशित सभी ग्रंथ एक से बढ कर एक सुन्दर आकर्षक सभ्य ने रिपूर्ण होने से महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं और सभी पाठकों ने स्वाध्याय करके लाभ प्राप्त किया है। पाठकों के लाभार्थ ग्रंथमाला समिति द्वारा किये गये प्रकाशनों की जानकारी प्रदान करने हेतु प्रकाशित ग्रंथ में लेख प्रकाशित कर दिया गया है। आशा है कि पाठकगण जिन्होंने अब तक ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित ग्रंथों को प्राप्तकर लाभ नहीं उठाया है, लाभ उठा सकेंगे। 1
इस प्रकार गणधराचार्य कुंथु सागर जी महाराज के योगदान के बारे में जितना भी लिखा जावे उतना ही कम है। इसलिये मैं तो मात्र इतना ही समझता हूँ कि गुरुदेव गणधराचार्य कुंथु सागरजी महाराज आप परम्परा के दृढ़ स्तम्भ होने के साथ-साथ त्याग तपस्या एवं वात्सल्यता की साक्षात मूर्ति है।
परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुंथु सागरजी महाराज आर्ष परम्परा के दृढ़ स्तम्भ है | आगम के निर्भिक वक्ता हैं। समता वात्सल्यता और निर्ग्रन्थता आपके विशेष गुण हैं। जो भी भव्य जीव आपके दर्शन लाभ प्राप्त करता है, वह अपने आपको धन्य मानता है ।
स्व. कल्याण के साथ-साथ आप के भाव पर कल्याण के लिये भी सदैव बने रहते है जिसके लिये आपने अनेकों दीक्षाएँ दी और भव्य जीवों को अपना कल्याण करने का सुअवसर प्रदान किया ।
वर्तमान में आपका विशाल संघ है जिसमें 20 साधु हैं जो सभी सदैव अध्ययन चिंतन मनन में संलग्न रहते हैं।
सभी शिष्य समुदाय से आप का विशेष वात्सल्य रहता है। और जब भी आप ग्रंथों
की टीका करते हैं योग्यतानुसार उनके नामों से करते रहते हैं। प्रस्तुत ग्रंथ की टीका भी आपने