Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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हाथों के आकार वर्ण, बनावट का विस्तार वर्णन है। हथेली में ग्रह, नक्षत्र, राशि और पर्वत का भी इसमें पूर्ण मौलिक, वैज्ञानिक विवेचन है। हस्त सामुद्रिक पर इतना तथ्यपूर्ण, ठोस मौलिक ग्रंथ भारत ही नहीं विदेशी किसी भी भाषा में प्राप्त नहीं है। इसके चित्रों ने इसे सजीव बना दिया है, ग्रंथ स्वयं बोलता है "करलखन" ग्रंथ हस्तरेखा जिज्ञासुओं के लिए मार्गदर्शक था किंतु इसका सचित्र प्रकाशन और व्याख्यात्मक विश्लेषण जिस सजीव सरल ढंग से प्रस्तुत प्रकाशन में है ऐसा अन्यत्र नहीं हाथ देखने की विधि, समय, पंचागुली देवी की आराधना, इष्ट, मंत्र, ध्यान, पृच्छक एवं ज्योतिषी तथा हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए यह नई लाभकारी सूचना देता है।
रेखा ज्ञान तथा रेखाओं की चमक, अस्त, उदित, ग्रहों की उदित अस्त स्थिति, पावर और उसके धारक की स्थिति पर वैज्ञानिक विवेचन है। विद्वान आचार्य साधक श्री ने ग्रंथ को सर्व उपयोगी और सरलतम कर दिया है। यद्यपि सामुद्रिक शरीर शास्त्र के इस ग्रंथ में मात्र दाहिने बायें हाथों की रेखा -तिल, निशान, पौरे, चक्र स्थिति एवं अंगुष्ठ का ही प्रतिपादन मात्र नहीं है अपितु शंख, चक्र, त्रिवली एवं अग्नि वायु, जल, पृथ्वी तत्वों की धारणा के अनुसार भी फल विवेचन और कुंडली निर्माण कला है। ऐसा सर्वजन उपयोगी ग्रंथ द्वारा श्री भद्रबाहु संहिता और सामुद्रिक शास्त्र करलखन कर सचित्र प्रकाशन 1994 की अमर ऐतिहासिक घटना है। जिसके के लिए व्याख्याकार मीमांशक गणधराचार्य भगवन् वात्सल्य रत्नाकर भारत गौरव कुन्थुसागरजी महाराज को कोटिशः नमन वंदन एवं इस ग्रंथमाला के प्रकाशन संयोजक श्री शांति कुमार जी गंगवाल संगीताचार्य का हार्दिक अभिनंदन अभिनंदन है। कालज्ञों, ज्योतिषी विद्वानों, जिज्ञासुओं के लिए ऐसी कृति प्रस्तुत करने के लिए जयपुर ( जैनपुरी) की इस "गंगवाल गृहस्थी" का सार्वजनिक अभिनन्दन समारोह हो
- ऐसी मंगल कामना है।
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