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अनुसार खींचना, अपने विश्वास में लेना, वह कपट है। उस कपट का खुद को भी पता नहीं चलता।
'मोक्ष के अलावा मुझे कुछ भी नहीं चाहिए' ऐसी जागृति निरंतर रहे तब वह कपट जाने लगता है। रोज़ सुबह पाँच बार ऐसा बोलना, उससे जागृति आती जाएगी।
चतराई से सामनेवाले को वश में करता है, कपट के कारण और कपट की पूरी बाज़ी खेलने के लिए। जिसे अपने खुद के हित की या अहित की बात समझ में आ जाए तो वह सामनेवाले की चतुराई में नहीं फँसेगा।
'मेरे खुद के सभी दोष निकालने ही हैं, मोक्ष में जाना ही है।' बार-बार ऐसी भावना करने से छूटा जा सकेगा।
जब तक संसार में कहीं भी मिठास बरतती है, तब तक निज स्वभाव का अखंड ध्यान नहीं बरत सकता। वह खंडित हो ही जाता है। कड़वे से कोई रुकावट नहीं आती। मिठास से गोता खा जाते हैं।
ज्ञानीपुरुष से मिलने के बाद मोक्ष के स्टेशन तक पहुँचने के लिए अपनी गाड़ी मेन लाइन पर आ जाती है लेकिन अगर बीच में कोई 'पोइन्ट मैन' मिल जाए तो गाड़ी कौन से गाँव ले जाएगा, उसका ठिकाना नहीं है। पूरी पटरी ही बदलवा देगा! ऐसा बोलेगा कि हमें चक्कर में डाल देगा!
ज्ञानीपुरुष चेतावनी दें, तब पता चलता है कि पटरी बदल गई है। फिर सूक्ष्मता से पृथक्करण करने पर तो पता चलेगा कि कहाँ से शुरुआत हुई थी, क्या हुआ, किसने किया, किस आधार पर हुआ, हमारे कौन से लालच ने हमें ललचा दिया, भीतर निराकुलता थी वह चली गई और आकुलता कहाँ से घर कर गई? जागृति से वह सब पता चलता है। जिसका व्यवहार डिगा, उसका निश्चय डिग ही जाता है।
कच्चे कान के नहीं बनेंगे, पटरी नहीं बदलेगी तो प्रगति होगी। सम्यक् बात को ही पकड़कर रखना चाहिए। उसे काटने वाली किसी भी
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