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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
वार्तालाप है और जब वह ध्वन्यात्मक होकर मुख-विवर से व्यक्त होता है, तो उसकी संज्ञा भाषा हो जाती है । सारांश यह है, प्लेटो के अनुसार भाषा और विचार में मूलतः ऐक्य है । केवल वाह्य दृष्टि से ध्वन्यात्मकता और अध्वनियात्मकता के रूप में अन्तर है ।
प्लेटो वाक्य - विश्लेषण और शब्द-भेद के सम्बन्ध में भी कुछ आगे बढ़े हैं । उद्देश्य, विधेय, वाच्य, व्युत्पति आदि पर भी उनके कुछ संकेत मिलते हैं, जो भाषा विज्ञान-सम्बन्धी यूनानी चिन्तन के विकास के प्रतीक हैं ।
अरस्तू का काव्य शास्त्र
प्रकाश डाला है ।
यूनान के तीसरे महान् दार्शनिक, काव्यशास्त्री और चिन्तक अरस्तु थे । उनका भी मुख्य विषय भाषा नहीं था, पर, प्रासंगिक रूप में भाषा पर भी उन्होंने अपना चिन्तन दिया । अरस्तू का एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ पोयटिक्स ( काव्यशास्त्र ) है, जिसमें उन्होंने त्रासदी, कामदी आदि काव्य-विधाओं का मार्मिक विवेचन किया है । पोयटिक्स के दूसरे भाग में अरस्तू ने जहां शैली का विश्लेषण किया है, वहां भाषा पर भी कुछ यद्यपि वह भाषा-विज्ञान से साक्षात् सम्बद्ध नहीं है, पर, महत्वपूर्ण है उनके अनुसार वर्ण अविभाज्य ध्वनि है । वह स्वर, अन्तस्थ और स्पर्श के रूप में विभक्त है । दीर्घ, ह्रस्व, अल्पप्राण तथा महाप्राण आदि पर भी उन्होंने चर्चा की है। उन्होंने स्वर की जो परिभाषा दी, वस्तुतः वह कुछ दृष्टियों से वैज्ञानिक कही जा सकती है । उन्होंने बताया कि जिसकी ध्वनि के उच्चारण में जिहवा और औष्ठ का व्यवहार न हो, वह स्वर है ।
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उद्देश्य, विधेय, संज्ञा, क्रिया आदि पर भी अरस्तू ने प्रकाश डाला है । कारकों तथा उनको प्रकट करने वाले शब्दों का भी उन्होंने विवेचन किया है, जो यूरोप में इस कोटि का सबसे पहला प्रयास है । प्लेटो ने शब्दों के श्रेणी विभाग ( Parts of Speech ) का जो प्रयत्न आरम्भ किया था, उसे पूरा कर आठ तक पहुंचाने का श्रेय अरस्तू को ही है । उन्होंने लिंग (स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग ) -भेद तथा उनके लक्षणों का भी विश्लेषण किया । ग्रीक, लैटिन और हि
जिनमें पहले थँक्स
ग्रीक वैयाकरणों ने तदनन्तर प्रस्तुत विषय को और आगे बढ़ाया। ( ई० पू० दूसरी शती ) हैं । ग्रीस और रोम में जब पारस्परिक संपर्क बढ़ने लगा, तब विद्याओं का आदान-प्रदान भी प्रारंभ हुआ । फलतः रोमवासियों ने ग्रीस की भाषा अध्ययनप्रणाली को ग्रहण किया और लेटिन भाषा के व्याकरणों की रचना होने लगी । लेटिन का सबसे पहला प्रामाणिक व्याकरण लौरेंशस वाल नामक विद्वान् द्वारा लिखा गया । वह ईसाईधर्म के प्रभाव का समय था; अतः ग्रीस और रोम में ओल्ड टेस्टामेंट ( Old testament )
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