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७. चित्र परिचय
Illustration No. 7
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(२) तीन प्रकार की परिषद् १. ज्ञायिका परिषद्-हंस के समान। हंस दूध से भरे कटोरे में से पानी छोड़कर दूध ग्रहण कर लेता है। ऐसा होता है विनीत और गुणज्ञ श्रोता।
२. अज्ञायिका परिषद-जैसे मग, सिंह, मुर्गा आदि को शिक्षक जिस प्रकार की शिक्षा देता है उसी प्रकार सीख जाते हैं। उसी प्रकार के सरल बुद्धि श्रोता। __रत्न संधायक-रत्न-मणि आदि पत्थर बेडोल होते हैं किन्तु कुशल कारीगर उन्हें है तराशकर मन चाहे ढंग से जड़कर सुन्दर आभूषण बना लेता है। इसी प्रकार अज्ञानी है किन्तु सरल प्रकृति वाले श्रोता को वक्ता अपने विचारों के अनुकूल बना लेता है।
३. दुर्विदग्धा परिषद्-जैसे गाँव का कम पढ़ा-लिखा पंडित अपनी प्रशंसा सुनकर , ॐ अहंकार में फूला रहता है, दूसरों की बात नहीं मानता। वैसे ही अल्पज्ञानी अहंकारी श्रोता
सदा अपनी बात पर ही अड़े रहते हैं। (गाथा ५२-५४ तक)
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(2) THREE TYPES OF CONGREGATION 1. Jnayika Parishad-Like swans. Swan drinks milk from a bowl 4 filled with milk and leaves any water mixed in it. Such is a modest
and virtue appreciating listener. 4. 2. Ajnayika Parishad-Animals like deer, lion and cock learn 41 whatever is taught to them by their trainer. Such are the simple #minded ignorant listeners.
Ornament maker-The gems in natural form are shapeless. A skilled artisan cuts and polishes them and an ornament maker sets
them and makes beautiful ornaments. In the same way an ignorant 5 but simple minded listeners can be moulded by a speaker.
3. Durvidagdha Parishad-A little read scholar from a village is filled with ego when he is praised and stops listening to others. In the 41 same way a conceited listener with little knowledge is adamant on
what he says. (52-54)
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