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Although knowledge cannot be acquired only with the help of 15 4 vyanjanavagrah, but as at its conclusion comes arthavagrah, which is 41 5 a form of knowledge, it certainly is a means of knowledge. That is 1
why, causally it is accepted as knowledge. If there is a total absence 4 of knowledge in vyanjanavagrah how on maturing could it turn into 45 arthavagrah which is knowledge. Therefore it can be inferred that no 5
matter how infinitesimal it is, there certainly is a fraction of si knowledge existing in vyanjanavagrah. However, as it is infinitesimal it is not expressible.
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व्यंजनावग्रह के चार भेद FOUR CATEGORIES OF VYANJANAVAGRAH ५५ : से किं तं वंजणुग्गहे? बंजणुग्गहे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-(१) सोइंदिअवंजणुग्गहे,
(२) घाणिंदियवंजणुग्गहे, (३) जिब्भिंदियवंजणुग्गहे, (४) फासिंदियवंजणुग्गहे, से तं वंजणुग्गहे।
अर्थ-प्रश्न-इस व्यंजनावग्रह के कितने भेद हैं ? ___ उत्तर-व्यंजनावग्रह चार प्रकार का कहा गया है-(१) श्रोत्रेन्द्रिय व्यंजनावग्रह, ॐ (२) घ्राणेन्द्रिय व्यंजनावग्रह, (३) जिह्वेन्द्रिय व्यंजनावग्रह, (४) स्पर्शनेन्द्रिय व्यंजनावग्रह।।
55. Question–Of how many types is this vyanjanavagrah? Answer-Vyanjanavagrah is said to be of four types
(1) Shrotrendriya vyanjanavagrah, (2) Ghranendriya vyanjanavagrah, (3) Jihvendriya vyanjanavagrah, and i (4) Sparshanendriya vyanjanavagrah.
विवेचन-व्यंजनावग्रह का यहाँ स्वरूप बताया है जब तक रसनेन्द्रिय (जीभ) से रस का बद्ध 卐 स्पर्श नहीं होता तब तक उसके द्वारा अवग्रह नहीं हो सकता। स्वाद का ग्रहण तभी होता है जब 5
रस का जीभ से सीधा अथवा घनिष्ट संस्पर्श हो। यही स्थिति स्पर्शन तथा घ्राण इन्द्रियों की है।
श्रोत्रेन्द्रिय को ऐसे सीधे या घनिष्ट स्पर्श की आवश्यकता नहीं होती। वह सामान्य स्पर्श मात्र से ॐ अवग्रह क्रिया कर लेती है। इन चारों इन्द्रियों को प्राप्यकारी इन्द्रियाँ कहते हैं। इन पर विषयक
द्वारा किया अनुग्रह उपघात (परस्पर सम्पर्क) होता है।
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ॐ श्रुतनिश्रित मतिज्ञान पy
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