Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 524
________________ फ्र फफफफफफ क क क श क क 50 ओसप्पिणीगंडिआओ, चित्तंत्तरगंडिआओ, अमर-नर- तिरिअ-निरय-गइ-गमण-विविहपरियणाणुओगे, एवमाइ आओ गंडिआओ आघविज्जंति, पण्णविज्जति । सेत्तं डिआणुओगे, सेतं अणुओगे । न - गण्डिकानुयोग में क्या है ? अर्थ- प्रश्न उत्तर - गण्डिकानुयोग में कुलकरगण्डिका, तीर्थंकरगण्डिका, चक्रवर्तीगण्डिका, दशारगण्डिका, बलदेवगण्डिका, वासुदेवगण्डिका, गणधरगण्डिका, भद्रबाहुगण्डिका, तपोकर्मगण्डिका, हरिवंशगण्डिका, उत्सर्पिणीगण्डिका, अवसर्पिणीगण्डिका, चित्रान्तरगण्डिका, देव, मनुष्य, तिर्यंच, नरक आदि गतियो में गमन तथा संसार पर्यटन आदि गण्डिकाएँ कही गई हैं, प्रतिपादित की गई हैं। यह गण्डिकानुयोग का वर्णन है। यह अनुयोग का वर्णन है। 108. Question - What is this Gandikanuyog ? Answer-In Gandikanuyog are discussed and propagated— Kulkar Gandika, Tirthankar Gandika, Chakravarti Gandika, Dashar Gandika, Baldev Gandika, Vasudev Gandika, Ganadhar 5 Gandika, Bhadrabahu Gandika, Tapokarma Gandika, Harivamsh Gandika, Utsarpini Gandika, Avasarpini Gandika, 卐 Chitrantar Gandika, and births in genuses of gods, human फ्र I beings, animals, hell beings, etc., cycles of rebirth and other such gandikas. 卐 This concludes the description of Gandikanuyog, this concludes the description of Anuyog. 卐 विवेचन- गण्डिका का अर्थ है गॉठ। जिसमें इतिहास गन्ने की गॉठों की तरह विषयानुसार, 卐 क क्रमानुसार अथवा कालानुसार विभाजित हो वह गण्डिकानुयोग कहा गया है। जैसे- गन्ना अनेक गाँठों से विभाजित होता है वैसे ही कालक्रम तीर्थंकर काल से विभाजित करें तो वीच का समय 卐 अनेक महापुरुषों के इतिहास से सजा हुआ है। गण्डिकानुयोग में इन सभी के अनेक भवों- आगत 5 व अनागत ( भविष्य) की कथाएँ हैं । 5 卐 Elaboration-Gandika means knot. That in which history is 5 divided, like knots in sugar-cane or bamboo, subject wise, sequence - 5 5 wise, or period-wise, is named Gandikanuyog. As a sugar-cane is 5 divided by knots, if we divide the span of time by periods of Tirthankars the intervening periods are filled with the history of श्रुतज्ञान ( ४५३ Jain Education International Shrut-Jnana �5555555555545555565555595555� For Private & Personal Use Only 5 www.jainelibrary.org

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