Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 530
________________ 5555 5959595555555 595 59595445455€ around in the dense forest of cycles of rebirth in four gatis (genuses). विवेचन-द्वादशांग में संसारी जीवों के हित साधन के लिए जो कुछ सत्य बताया गया है उसे ही आज्ञा कहते हैं । आज्ञा के तीन प्रकार बताये हैं- सूत्राज्ञा, अर्थाज्ञा और उभयाज्ञा । इनकी विराधना के उदाहरण हैं (१) जमालि के समान जो अज्ञान एवं दुराग्रहपूर्वक अन्यथा सूत्र पढ़ता है वह सूत्राज्ञा का विराधक है। 卐 (२) दुराग्रह के कारण जो द्वादशांग की अन्यथा प्ररूपणा करता है वह अर्थाज्ञा का विराधक होता है जैसे-गोष्ठामाहिल । (३) जो श्रद्धाविहीन व्यक्ति द्वादशांग के शब्दों व अर्थों दोनों का उपहास करता है और उनसे विपरीत चलता है वह उभयाज्ञा विराधक है। Elaboration-The truth revealed in the Dvadashang for the benefit of the worldly beings is called ajna (order). There are said to 5 be three types of ajna - sutrajna (text ), arthajna (meaning), and ubhayajna (both). The examples of going against these are 1. He who, inspired by dogmas and out of ignorance, studies 5 wrong texts, as Jamali did, is going against sutrajna. 2. He who, inspired by dogmas and out of ignorance, interprets the text wrongly, as Goshthamahil did, is going against arthajna. 3. He who, lacks faith and mocks both, text and meaning of the Dvadashang and behaves contrary to it, is going against ubhayajna (both). द्वादशांग - आराधना का सुफल GOOD CONSEQUENCES OF FOLLOWING THE DVADASHANG ११३ : इच्चेइअं दुबालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता 5 चाउरतं संसारकंतारं वीइवइंसु । इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीइवयंति । इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीइवइस्संति । 5 श्रुतज्ञान ( ४५९ ) Jain Education International 555555555 Shrut-Jnana For Private & Personal Use Only 卐 56 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542