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(८) करेई वा सम्म-ज्ञान का सार है चारित्र। सुना हुआ, मन में स्थिर किया हुआ ज्ञान ज सम्यक आराधना द्वारा आचरण में उतरता है तब वह कर्मक्षय कर मुक्ति प्राप्त कराने में समर्थ ॥
होती है। बुद्धि का अन्तिम गुण है ज्ञान पर सम्यकप में आचरण करें।
ज्ञान सुनने की विधि म गाथा ४ में गुरुजनों से ज्ञान श्रवण करने की विधि वताई है। गुरुओं के सामने दोनों हाथ , +जोड़कर विनयपूर्वक नम्र आसन से वैठें। गुरुजन जब ज्ञान या तत्त्व का प्रवचन करते हैं तब शिष्य सुना हुआ इस प्रकार उसका आदर करें।
(१) मूअं-गुरुजन जब ज्ञान सुना रहे तो शिष्य मौन रहकर दत्तचित्त होकर सुनें। (२) हुंकारं-गुरु वचन सुनते हुए बीच-बीच में हुंकार या स्वीकार करते रहना चाहिए।
(३) बाढंकार-गुरु से ज्ञान सुनते हुए यथासमय उसका आदर करते हुए कहें-गुरुदेव ! - आपने जो कहा वह सत्य है। तहत्ति (तथ्य) है।
(४) पडिपुच्छई-प्रवचन या तत्त्वज्ञान सुनने पर जब जहाँ समझ में नहीं आये तो ॐ आवश्यकतानुसार बीच-बीच में पूछते रहना चाहिए। 4 (५) मीमांसा-गुरु वचनों को सुनकर उन पर मनन करें। उनके भावार्थ पर विचारणा करते 卐 रहें।
(६) प्रसंग पारायण-गुरुजनों द्वारा उक्त विधिपूर्वक सुनने वाला शिष्य श्रुत का धारक या ॐ पारगामी बन जाता है।
(७) परिणिट्ठिआ-इसके पश्चात् वह गुरु वचनों को धारण कर उन पर मनन पर उन ॐ सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने में समर्थ बन जाता है।
____ अतः शास्त्र जिज्ञासु उक्त विधिपूर्वक गुरुजनों से शास्त्र श्रवण करें। 9 सूत्रार्थ व्याख्यान विधि
गाथा ५-बहुश्रुत आचार्य, उपाध्याय आदि शिष्य को सूत्र की वाचना इस क्रम से करें। ___ सूत्रार्थ-सर्वप्रथम शिष्य को सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना सिखाए। फिर उसका अर्थ समझावे।
निज्जुत्ति-उसके पश्चात् आगम के शब्दों की नियुक्ति अर्थात् उनका भाव प्रकट करने वाली व्याख्या करें। - इसके पश्चात् उस सूत्र का विस्तृत अर्थ समझावे, उत्सर्ग-अपवाद निश्चय-व्यवहार, ॐ नय-निक्षेप-प्रमाण और अनुयोगद्वार आदि विधि से उसकी व्याख्या करें। इस प्रकार शास्त्र का है ॐ सर्वांग विधि से ज्ञान प्रदान कर शिष्य को श्रुत का पारगामी वनावे।
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श्री नन्दीसूत्र
Shri Nandisutra
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