Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 526
________________ 5555555555555步步步步步步步步步步步步步步步步岁岁岁55分 से णं अंगठ्ठयाए बारसमे अंगे, एगे सुअक्खंधे, चोहसपुव्वाइं, संखेज्जा वत्थू, # + संखेज्जा चूलवत्थू, संखेज्जा पाहुडा, संखेज्जा पाहुडपाहुडा, संखेज्जाओ पाहुडिआओ, म E संखेज्जाओ पाहडपाहुडिआओ, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, + अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध निकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जति, 卐 निदसिज्जंति. उवदंसिज्जति। ॐ से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण-करण परूवणा आघविजंति। के से तं दिट्ठिवाए। a अर्थ-दृष्टिवाद की संख्यात वाचना, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढः (छन्द), संख्यात 5 श्लोक, संख्यात प्रतिपत्तियाँ, संख्यात नियुक्तियाँ, और संख्यात संग्रहणियाँ हैं। ॐ अंग सूत्रों के क्रम में यह बारहवाँ अंग है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध, चौदह पूर्व, संख्यात वस्तु, संख्यात प्राभृत, संख्यात प्राभृतप्राभृत, संख्यात प्राभृतिकाएँ, संख्यात प्राभृतिका प्राभृतिकाएँ हैं। इसका पद परिमाण संख्यात सहन पदाग्र है। इसमें अनन्त पर्याय, परिमित मस और अनन्त स्थावर हैं। इसमें शाश्वत, कृत, निबद्ध, और निकाचित जिन-प्रणीत भावों का आख्यान है, प्ररूपणा है, दर्शन है, निदर्शन है और उपदर्शन है। इसका अध्ययन करने वाला इसमें तन्मय होकर उन भावों का ज्ञाता एवं विज्ञाता हो * जाता है ऐसी चरण-करण रूप प्ररूपणा इसमें की गई है। * यह दृष्टिवाद श्रुत का वर्णन है। 110. Drishtivad has limited vachana (readings, lessons, 5 compilations, editions). It has countable anuyogadvar, 卐 countable verses, countable couplets, countable prattpattis, Si countable niryukti (parsing), and countable sangrahanis. This Drishtivad is twelfth among the Angas. It has one ; 卐 shrutshandha (part), fourteen purvas, countable vastus, countable prabhrit, countable prabhrit-prabhrit, countable prabhritikas, and countable prabhritika-prabhritikas Measured in pad (sentence units) it has countable thousand pad. It has 卐 countable alphabets, infinite gum (meanings) and infinite : paryaya (variations). It has descriptions of limited number of mobile beings, and infinite immobile beings. Established with 4 the help of shashvat (eternal or fundamental), krit (created or 4 4श्रुतज्ञान ( ४५५ ) Shrut-Jnana 0555555555555555555555555550 步步步步步步步步步牙牙牙牙牙乐场步步步步步步步步牙牙齿牙牙步步步步步步步步步步步步步 $听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFFFFF听听听听听听听听听听听听听 步步步步 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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