Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 522
________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听% 当场断断断断断与筑劳步步步步步步步步步步步步步步步步步步步为中 मूलपढमाणुओगे णं अरहताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवगमणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि, अभिसेआ, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पाओ.5 ॐ तित्थपवत्तणाणि अ, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं. च परिमाणं, जिण-मणपज्जव-ओहिनाणी, सम्मत्तसुअनाणिणो अ, वाई, अणुत्तरगई अटक उत्तरवेउव्विणो अ मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तिआई भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे, मुणिवरुत्तमे तिमिरओघविप्पमुक्के, मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते। एवमन्ने अ एवमाइभावा मूलपढमाणुओगे कहिआ। से तं मूलपढमाणुओगे। अर्थ-प्रश्न-यह अनुयोग क्या है ? उत्तर-अनुयोग दो प्रकार का बताया है-(१) मूल प्रथमानुयोग, और (२) गण्डिकानुयोग। प्रश्न-मूल प्रथमानुयोग में क्या है? उत्तर-मूल प्रथमानुयोग में अर्हन्त भगवंतों के पूर्वभव, देवलोकगमन, देवलोक आयुष्य, च्यवन, जन्म, अभिषेक, राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या, उग्र तपस्या, केवलज्ञान उत्पत्ति, तीर्थप्रवर्तन, शिष्यगण, गणधर, आर्यिकाएँ व प्रवर्तिनियाँ, चतुर्विध संघ का परिमाण, जिन (केवली), मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, सम्यक् श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तरगतिधारी, उत्तर वैक्रिय है लब्धिधारी, जितने भी मुनि सिद्ध हुए, जैसे मोक्ष का पथ दिखाया, जितने समय तक अनशन किया, जिस स्थान पर जितने भक्तों (उपवासों) का छेदन किया, और अज्ञान अन्धकार के प्रवाह से मुक्त होकर जो महामुनि मोक्ष के प्रधान सुख को प्राप्त हुए उनका वर्णन है। इसके अतिरिक्त अन्य भाव भी मूल प्रथमानुयोग में प्रतिपादित किये गये हैं। यह मूल प्रथमानुयोग का वर्णन है। 107. Question-What is this Anuyog? ___Answer-Anuyog is said to be of two types-1. Mools Prathamanuyog, and 2. Gandikanuyog. Question-What is this Mool Prathamanuyog? Answer-In Mool Prathamanuyog are included the various incidents from the lives of Arhant Bhagavants, such as-their+ earlier births, reincarnation as gods, life-span as gods, descent, birth. anointing. kingdom,. initiation, harsh austerities, in $听听听听听听听听听听听听$$$$$$$$$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 $乐乐5FF$$$$$$$$$$$$$$$ श्रुतज्ञान ( ४५१ ) Shrut-Jnana 555550 भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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