Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 412
________________ 555555555555555555550 73.Question-What is this akshar shrut? Answer-Akshar shrut is said to be of three types# 1) Sanjna akshar, 2) Vyanjana akshar, and 3) Labdhi akshar. Question-What is this Sanjna akshar? i Answer—The shape or structure of akshar (letter) is sanjna 5 45 akshar. 43F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F听听听 Question-What is this Vyanjana akshar? Answer—That which is pronounced vocally is vyanjana akshar. Question-What is this Labdhi akshar? Answer-A being with the akshar labdhi (vocal power) is 41 capable of acquiring the knowledge called labdhi akshar. For example Shrotrendriya labdhi akshar, Chaksurindriya labdhi akshar, Ghranendriya labdhi akshar, Jihvendriya labdhi 5 akshar, Sparshanendriya labdhi akshar, and No-indriya labdhi 卐 akshar. विवेचन-जिसका क्षय न हो वह अक्षर होता है। ज्ञान जीव का शाश्वत स्वभाव है। ज्ञान का के अस्तित्व समाप्त हो जाए तो जीव का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। जीव का अक्षय गुण होने के कारण ज्ञान का पर्यायवाची शब्द है अक्षर। यह भाव की अभिव्यक्ति के लिए जो रूप लेता है । * उसे भी अक्षर ही कहते हैं। अक्षरश्रुत के तीन भेद इसी आधार पर किए गए हैं। (१) संज्ञाक्षर-अक्षर की संज्ञा जिसे दी गई हो वह संज्ञाक्षर है। अन्य शब्दों में जिस आकृति या 5 रूप से जो अक्षर विशेष पहचाना जाता है उसे संज्ञाक्षर कहते हैं। विभिन्न लिपियों के विभिन्न 卐 ध्वनियों के परिचायक चिह्नों को अर्थात् वर्णाक्षरों को संज्ञाक्षर कहते हैं। जैसे-अ, आ, क, ख . आदि। (२) व्यंजनाक्षर-अक्षर का अर्थमय ध्वनिरूप व्यंजनाक्षर है। जब हम कोई अक्षर या अक्षर समूह उच्चारित करते हैं तो शब्द और वाक्यों का निर्माण होता है और इन वाक्यों के संगटित 5 रूप से भावों की अभिव्यक्ति होती है जो अनेक रूप में संकलित की जा सकती है; जैसे लेख, 卐 नाटक, कविता, ग्रन्थ आदि। संक्षेप में लिपि आदि संज्ञाक्षर है तथा पुस्तक आदि व्यंजनाक्षर है। के (३) लब्धि अक्षर-अक्षर का भावरूप लब्धि-अक्षर है। ध्वनि सुनकर अथवा रूप देखकर उसमें निहित अर्थ को अनुभवपूर्वक समझना ही भावरूप अथवा ज्ञानरूप है। अन्य शब्दों में-शब्द है ग्रहण होने के पश्चात् इन्द्रिय और मन के निमित्त से जो शब्दार्थ के पर्यालोचन के अनुसार ज्ञान उत्पन्न होता है उसे लब्धिक्षर कहते हैं। $听听听听听听听听听听听听听听听听听听FF折$$$ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 L ॥ श्रुतज्ञान (३४१ ) Shrut-Jnana 055555555555555555555555550 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542