Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 497
________________ काबा का गाना बाळाला ला It has been presented in such charan-karan style that if a person is engrossed in its studies, he becomes a scholar and an expert of the subject. This concludes the description of Prashnavyakaran Sutra. विवेचन-प्रश्नव्याकरण का अर्थ है प्रश्न और उत्तर । इस सूत्र में प्रश्नोत्तर शैली में विभिन्न पदार्थों व विषयों का वर्णन है । यह आगम सूत्र मुख्यतः देवाधिष्ठित मंत्रों एवं विद्याओं के विषय में है। विद्या अथवा मंत्र विधिपूर्वक सिद्ध कर लेने पर शुभ व अशुभ की सूचना मिलती है। इसमें १०८ प्रश्न ऐसे हैं जिनके पूछने पर यह सूचना मिलती है । १०८ ऐसे हैं जिन्हें बिना पूछे ही स्वतः सूचना मिल जाती है तथा १०८ ऐसे भी जिन्हें पूछने पर तथा बिना पूछे भी अपने आप सूचना मिलती है। इसके साथ ही इसमें अनेक प्रकार के विचित्र प्रश्न तथा अतिशय विद्याओं के वर्णन तथा श्रमण निर्ग्रन्थों के साथ नाग कुमारों तथा सुपर्ण कुमारों के दिव्य संवादों का भी वर्णन है। स्थानांगसूत्र में प्रश्नव्याकरणसूत्र के दस अध्ययनों के जो नाम दिए हैं, उनका नन्दीसूत्र से साम्य नहीं है। वर्तमान में इसमें दो श्रुतस्कन्ध उपलब्ध हैं। प्रथम में हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का विशेष वर्णन है तथा दूसरे में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह की अनूठी विवेचना है। ऐसा लगता है कि इस मंत्र तथा विद्याओं के विशेष ग्रन्थ के अतिशय विद्या वाले अंगों का लोप हो गया है। वर्तमान में वह उपलब्ध नहीं है। दिगम्बर मान्यता इस सूत्र के संबंध में दिगम्बर मान्यता के अनुसार इसमें लाभ - अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, जय-पराजय, हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या के विषय में चर्चा है। इसके साथ ही तत्त्वों का निरूपण करने वाली चार धर्मकथाएँ भी विस्तार से इसमें दी गई हैं। ये हैं (१) आक्षेपणी कथा - जो अनेक प्रकार की एकान्त दृष्टियों का निराकरण तथा शुद्धि करके छह द्रव्यों और नौ पदार्थों का प्ररूपण करती है। (२) विक्षेपणी कथा- इसमें पहले पर-पक्ष के द्वारा स्व-पक्ष में दोष बताए जाते हैं फिर पर-पक्ष की आधारभूत अनेक प्रकार की एकान्त दृष्टियों का शोधन करके स्व-पक्ष की स्थापना ! की जाती है और छह द्रव्य तथा नौ पदार्थों का प्ररूपण किया जाता है। (३) संवेगनी कथा - जिसमें पुण्य के फल का विस्तार से वर्णन हो । (४) निर्वेदनी कथा - पापों के परिणामस्वरूप नरक, तिर्यंच आदि गतियों में जन्म-मरण और व्याधि, वेदना, दारिद्र्य आदि की प्राप्ति का मार्मिक शैली में वर्णन कर वैराग्य की ओर प्रेरित करने वाली कथा | श्री नन्दीसूत्र ( ४२६ ) Jain Education International 5 5 5 5 5 5 5 6 7 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 Shri Nandisutra For Private & Personal Use Only 5555555 5 www.jainelibrary.org

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