Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 502
________________ @55555 �ନ 5 5 5 फ्र 45 pursuits with detachment, and earned the meritorious karmas that lead to an incarnation as gods. They will get liberated in future. ९५ : विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ! पडिवत्तीओ। 4 5 6 5 संखेज्जा से णं अंगट्टयाए इक्कारसमे अंगे, दो सुअक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्देसणकाला, संखिज्जाई, पयसहस्साइं पयग्गेणं, अक्खरा, अनंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-5 निबद्ध-निकाइआ जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ । सेत्तं विवागसुयं । अर्थ-विपाकश्रुत में परिमित वाचनाएँ, संख्यात अनुयोग द्वार, संख्यात वेढा, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं । 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5445! अंग सूत्रों की अपेक्षा यह ग्यारहवाँ अंग है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध, बीस अध्ययन, उद्देशन काल, और बीस समुद्देशन काल हैं। पद परिमाण में यह संख्यात सहस्र पदाग्र है । इसमें संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं। इसमें शाश्वत, कृत, निबद्ध और निकाचित द्वारा सिद्ध जिन-प्रणीत भावों का आख्यान है, प्ररूपणा है, दर्शन है, निदर्शन है और उपदर्शन है। इसका अध्ययन करने वाला इससे एकात्म हो ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है ऐसी चरण-करण रूप प्ररूपणा इसमें की गई है। श्रुतज्ञान यह विपाकश्रुत का वर्णन है। 95. Vipak Shrut has limited vachana (readings, lessons, compilations, editions). It has countable anuyogadvar, countable verses, countable couplets, countable niryukti (parsing), countable sangrahanis, and countable pratipattis. This Vipak Shrut is eleventh among the Angas. It has two shrutskandha ( parts ), 20 chapters, 20 uddeshan kaal, 20 samuddeshan kaal. Measured in pad (sentence units) it has countable thousand pad. It has countable alphabets, infinite gum (meanings) and infinite' paryaya (variations). It has ( ४३१ ) Jain Education International बीस For Private & Personal Use Only फ्र फ्र 55 55955555 5 5 5 5 5 5 5555� Shrut-Jnana www.jainelibrary.org

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