Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 501
________________ 给听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ॐ ९४ : से किं तं सुहविवागा ? ज सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, वणसंडाइं, चेइआई, समोसरणाइं, रामाणो, E अम्मापियरो, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोइअ-पारलोइया इड्डिविसेसा, ॐ भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुहपरंपराओ, सुकुलपच्चायाईओ, ॐ पुणबोहिलाभा अंतकिरिआओ, आघविज्जंति। ___ अर्थ-प्रश्न-यह सुखविपाक क्या है ? उत्तर-सुखविपाक में सुखविपाकियों (सुखरूपी विपाक को भोगने वाला प्राणी) के नगर, उद्यान, वनखण्ड, चैत्य समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, क इहलोक-परलोक की ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, प्रव्रज्या, पर्याय, श्रुत अध्ययन, तप-उपधान, संलेखना, भक्त-प्रत्याख्यान, पादोपपगमन, देवलोक-गमन, सुखों की परम्परा, पुनः बोधिलाभ, अन्तःक्रिया आदि विषयों का वर्णन है। ___94. Question-What is this Sukha Vipak? Answer-In Sukha Vipak topics like cities, gardens, chaityas, forests, samavasarans, kings, parents, religious 55 leaders, religious tales, special powers acquired during this birth 4 and others, renouncing mundane indulgences, initiation, modes 45 or variations, study of shrut, observation of austerities, ultimate + vow, bhakt pratyakhyan, paadopagaman, reincarnation as gods, 55 chain of happiness, again getting enlightened, and last rites, etc. 4 related to the sukha vipakis (the beings who enjoy pleasures as a 45 Si consequence) have been discussed. ॐ विवेचन-विपाकश्रुत के दूसरे श्रुतस्कन्ध-सुखविपाक के भी दस अध्ययन हैं। इनमें उन + पुण्यशाली आत्माओं का जीवन वृत्त है जिन्होंने पूर्वभव में सुपात्रदान देकर मनुष्य-भव की आयु का वध किया था। अपने पुण्य के फलस्वरूप उन्हें अतुल वैभव प्राप्त हुआ। इन्होंने अपने मनुष्य भव को भी धर्मध्यान में तथा त्यागपूर्वक बिताकर पुनः पुण्य अर्जित कर देवलोक की आयुष्य ॐ का वंधन किया तथा भविष्य में निर्वाण पद प्राप्त करेंगे। ___Elaboration-In the second part, Sukha. Vipalk, also there are ten 45 chapters. In these chapters are given the stories of life of those pious 55 beings who gave charity to the deserving during their earlier birth and as a consequence were born as human beings. Due to their meritorious deeds they were endowed with immense wealth and grandeur. Even as human beings they spent their life in spiritual ! 5 श्री नन्दीसूत्र ( ४३० ) Shri Nandisutra 5 O5555555555555555559 भएक55555555555555555555556 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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