Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 510
________________ SSSS 折$$55fw f听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听w F听听听听听听听听 0555555555555555mmananTTERLEELSEEEEEEEO उत्तर-अवगाढ-श्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है-(१) पृथगाकाशपद, 5 (२) केतुभूत, (३) राशिवद्ध, (४) एकगुण, (५) द्विगुण, (६) त्रिगुण, (७) केतुभूत, (८) प्रतिग्रह, (९) संसार प्रतिग्रह, (१०) नन्दावर्त, तथा (११) अवगाढावर्त। यह अवगाढ-श्रेणिका परिकर्म का वर्णन है। 101. Question-What is this Avagadh Shrenika Parikarma? 15 Answer-Avagadh Shrenika Parikarma is said to be of 5 eleven types—1. Prithakagash pad, 2. Ketubhoot, 3.5 Rashibaddha, 4. Ek Guna, 5. Dviguna, 6. Triguna, 7. Ketubhoot, 41 8. Pratigrah, 9. Samsar Pratigrah, 10. Nandavart, and 11. + Avagadhavart. This concludes the description of Avagadh Shrenika i Parikarma. विवेचन-अवगाहना का अर्थ है स्थान ग्रहण करना। आकाश सभी द्रव्यों को अपने प्रदेशों में 5 स्थान देता है। इस शीर्षक से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अवगाढ श्रेणिका परिकर्म में विभिन्न द्रव्यों का वे जिन प्रदेशों में अवगाढ (संस्थित) है उसके संदर्भ में विस्तृत वर्णन होगा। ___Elaboration-Avagahana means to occupy space. Akash (space) allows occupancy to all substances in its sections or space points. The title, Avagadh Shrenika Parikarma, indicates that this section must be dealing with the detailed description of various substances with reference to the space sections they occupy or are intimately connected with. (५) उपसम्पादन-श्रेणिका परिकर्म (5) UP-SAMPADAN SHRENIKA PARIKARMA १०२ : से किं तं उवसंपज्जणसेणिआपरिकम्मे ? उवसंपज्जणसेणिआपरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तं जहा-(१) पाढोआगासपयाई, (२) केउभूयं, (३) रासिबद्ध, (४) एगगुणं, (५) दुगुणं, (६) तिगुणं, (७) केउभूयं, (८) पडिग्गहो, (९) संसारपडिग्गहो, (१०) नंदावत्तं, (११) उवसंपज्जणावत्तं। से तं उपसंपज्जणावत्तं, से तं उपसंपज्जणसेणिआपरिकम्मे। अर्थ-प्रश्न-उपसम्पादन-श्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ? उत्तर-उपसम्पादन-श्रेणिका परिकर्म ११ प्रकार का है ss5s听听听听听听ss听听听听听%FFFF听听听听听听听听听sss s% 听听听听听听 श्रुतज्ञान Shrut-Jnana a O9555555555555555555555555555510 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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