Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 508
________________ फफफफफफफफ This concludes the description of Manushya Shrenika Parikarma. विवेचन - मनुष्य-श्रेणिका परिकर्म के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जा सकता है कि इसमें मनुष्य सम्बन्धी विकल्पों का श्रेणीबद्ध विवेचन होगा, जैसे- भव्य, अभव्य, परित्त संसारी, अनन्त, संसारी, चरम शरीरी, अचरम शरीरी, चारों गतियों से आने वाली मनुष्य श्रेणी, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, मिश्रदृष्टि, आराधक, विराधक, स्त्री, पुरुष, नपुंसक, गर्भज, सम्मूर्छिम, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, संयत, असंयत, संयतासंयत, मनुष्य श्रेणिका, उपशम-श्रेणिका तथा क्षपक-श्रेणिका । 555555e Elaboration-About Manushya Shrenika Parikarma it can be surmised that it must have contained a stage-wise discussion about various angles of human life. For example —— Bhavya, Abhavya, Paritta Samsari, Anant Samsarı, Charam Shariri, Acharam Shariri the various levels of human beings reincarnating from various dimensions, Samyagdrishti, Mithyadrishti, Mishradrishti, Aradhak Viradhak, Stri, Purush, Napumsak, Garbhaj, Sammurchhim Paryaptak, Aparyaptak, Samyat, Asamyat, Samyatasamyat Manushya Shrenika, Upasham Shrenika, and Kshapak Shrenika. (As this is just a hypothetical list, these terms have not been explained in details for lack of space.) श्रुतज्ञान 900 से किं तं पुट्टसेणिआपरिकम्मे ? पुट्ठसेणिआपरिकम्मे, इक्कारसविहे पण्णत्ते तं जहा - ( १ ) पाढोआगासपयाई (२) केउभूयं, (३) रासिबद्ध, (४) एगगुणं, (५) दुगुणं, (६) तिगुणं, (७) केउभूय (८) पडिग्गहो, (९) संसारपडिग्गहो, (१०) नंदावत्तं, (११) पुट्ठावत्तं । सेतं सेणिआपरिकम्मे । अर्थ- प्रश्न- पृष्ट श्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ? उत्तर- पृष्ट-श्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है - ( १ ) पृथगाकाशपद, (२) केतुभूत (३) राशिबद्ध, (४) एकगुण, (५) द्विगुण, (६) त्रिगुण, (७) केतुभूत, (८) प्रतिग्रह ( ९ ) संसार प्रतिग्रह, (१०) नन्दावर्त, तथा (११ पृष्टावर्त । यह पृष्ट श्रेणिका परिकर्म का वर्णन है। Jain Education International (३) पृष्ट श्रेणिका परिकर्म (3) PRISHTA SHRENIKA PARIKARMA ( ४३७ ) For Private Personal Use Only Shrut-Jnarla 5 www.jainelibrary.org

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