Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 518
________________ �5555 55455555 5 5 5 5 5 555555 5 ( ६ ) सत्यप्रवादपूर्व के दो वस्तु (७) आत्मप्रवादपूर्व के सोलह वस्तु हैं । हैं। हैं। (८) कर्मप्रवादपूर्व के तीस वस्तु हैं। ( ९ ) प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व के बीस वस्तु (१०) विद्यानुप्रवादपूर्व के पन्द्रह वस्तु (११) अबन्ध्यपूर्व के बारह वस्तु हैं। (१२) प्राणायुपूर्व के तेरह 'वस्तु हैं। (१३) क्रियाविशालपूर्व के तीस वस्तु हैं। (१४) लोकविन्दुसारपूर्व के पच्चीस वस्तु हैं। हैं। (संक्षेप में) पहले में 90, दूसरे में १४, तीसरे में ८, चौथे में १८, पाँचवें में १२, छठे में २, सातवें में १६, आठवें में ३०, नवें में २०, दसवें में १५, ग्यारहवें में १२, बारहवें में १३, तेरहवें में ३० और चौदहवें में २५ वस्तु हैं। आदि के चार पूर्वों में क्रमश: पहले में ४, १० चूलिकाएँ हैं शेष में चूलिकाएँ नहीं हैं । यह पूर्वगत का वर्णन है। 106. Question – What is this Purvagat ? Answer-Purvagat is said to be of fourteen types1. Utpad Purva, 2. Agrayan Purva, Viryapravad Purva, 4. Astinastipravad Purva, 5. Jnanapravad Purva, 56. Satyapravad Purva, 7. Atmapravad Purva, 8. Karmapravad th Purva, 9. Pratykhyanpravad Purva, 10. Vidyanupravad Purva, 11. Abandhya Purva, 12. Pranayu Purva, 13. Kriyavishal Purva, 14. Lokabindusar Purva. दूसरे में १२, तीसरे में ८, और चौथे में 1. Utpad Purva has ten vastu and four chulika vastu. 2. Agrayanı Purva has fourteen vastu and twelve chulika vastu. 3. Viryapravad Purva has eight vastu and eight chulika vastu. 5 श्रुतज्ञान 4. Asti-nastipravad Purva has eighteen vastu and ten chulika vastu. Jain Education International ( ४४७ ) �55 55555555 5 555 5555 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 Shrut-Jnana For Private & Personal Use Only 95 卐 @@ -फ्र www.jainelibrary.org

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