Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 467
________________ $$$牙玩斯罗贤5岁贸易斯身穿紧紧的努另等等等劣与多岁当劳55 + कारण हैं। ऐसे शरीर तथा मन को साता अथवा सुख पहुँचाने से ही अन्ततः जीव के लिए सुख-प्राप्ति को मानने वाले सातावादी कहलाते हैं। (६) समुच्छेदवादी-जो आत्मा आदि सभी पदार्थों को क्षणिक मानते हैं और नाश के बाद उनका अस्तित्व नहीं मानते वे समुच्छेदवादी कहलाते हैं। (७) नित्यवादी-इस सिद्धान्त को मानने वाले यह विश्वास रखते हैं कि प्रत्येक वस्तु केवल एक E रूप में अवस्थित है। पदार्थ में उत्पाद-व्यय अथवा विनाश व ह्रास नहीं होता। वे किसी भी पदार्थ को किसी संयोग व क्रिया का परिणाम नहीं मानते बल्कि कूटस्थ नित्य अर्थात् आधारभूत रूप से के अपरिवर्तनशील मानते हैं। उनके अनुसार सत् और असत् दोनों की ही उत्पत्ति और विनाश नहीं होते। जो पुद्गल जैसा है वैसा चिरकाल से चला आ रहा है और चिरकाल तक वैसा ही रहेगा। म (८) न संति परलोकवादी-पुनर्जन्म, परलोक, मोक्ष आदि को नकारने वाले सभी विचारक ॥ इस श्रेणी में आते हैं। ये आत्मा के अस्तित्व को नकारते हैं और आत्मा के अभाव में पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म, शुभ-अशुभ, इहलोक-परलोक, सादि सभी का अभाव हो जाता है। कुछ ऐसे भी हैं जो म आत्मा को तो मानते हैं किन्तु उसके विकास या शुद्धि को नहीं मानते। इसी संसार व जन्म में ही सुख-दुःख जो भी संयोगवश मिलता है वही सब कुछ है, इसके आगे कुछ नहीं। (स) अज्ञानवादी-अज्ञानवादी वे हैं जो अज्ञान को ही दुःख मुक्ति का उपाय मानते हैं। इनकी मान्यता है कि अज्ञानी का पाप भी पाप नहीं है। जैसे अज्ञान के कारण बालक के अपराध क्षम्य + होते हैं वैसे ही अज्ञानी के सभी अपराध ईश्वर द्वारा क्षम्य हैं। ज्ञानपूर्वक किये अपराध का दण्ड म मिलता है--अतः अज्ञान ही श्रेय है। ये ६७ प्रकार के बताये हैं। (द) विनयवादी-इनकी मान्यता है कि पशु-पक्षी, फूल-पत्ते, ज्ञानी-अज्ञानी, छोटा-बड़ा सभी पूज्य हैं-वन्दनीय हैं। अपने आपको क्षुद्र से भी क्षुद्र समझकर सबके प्रति विनय रखने से ही * मुक्ति मिलती है। ये ३२ प्रकार के बताये हैं। सूत्रकृतांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध में तेईस अध्ययन और तेतीस उद्देशक हैं तथा दूसरे श्रुतस्कन्ध में सात अध्ययन तथा सात उद्देशक हैं। पहला श्रुतस्कन्ध पद्यमय है, केवल सोलहवें अध्ययन में गद्य है। दूसरे श्रुतस्कन्ध में गद्य और पद्य दोनों हैं। सूत्रकृतांग में वाचनाएँ, अनुयोगद्वार, प्रतिपत्ति, वेष्टक, श्लोक, नियुक्तियाँ और अन्तर सभी * संख्यात हैं। परिमित त्रस और अनन्त स्थावरों का वर्णन है। इसकी पद संख्या ३६ हजार है। सूत्रकृतांग में भिक्षाचरी की सावधानी, परीषह में तितिक्षा-सहनशीलता, नारकों के दुःख, 卐 उत्तम साधुओं के लक्षण आदि विषयों तथा श्रमण, ब्राह्मण, भिक्षु, निर्ग्रन्थ आदि शब्दों की 5 परिभाषा युक्ति, दृष्टान्त तथा उदाहरणों की सहायता से भली प्रकार समझाई गई है। इसके . अतिरिक्त पाप-पुण्य का विवेक, आर्द्रककुमार के साथ गोशालक के संवाद, शाक्य भिक्षु तथा तापसों के वाद-विवाद, नालन्दा में हुए गौतम गणधर और उदकपेढाल-पुत्र का संवाद आदि 卐 रोचक तथा बोधप्रिय कथानक भी हैं। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 EF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F听听听听听听听听听听听 ॐ श्री नन्दीसूत्र $%% %% %% %% %% (३९६ ) %% %%% %%% %% %% Shri Nandisutra 4 % %% %% %% %% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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