Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 474
________________ 5555555555556 ב ב ב ב ב ב ב ב ב ב ב ב ב ב ב स्थान-२-द्विसंख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे- जीव- अजीव, पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म, आत्मा-परमात्मा आदि। स्थान- ३-त्रियोजक तत्त्वों का वर्णन, जैसे- रत्नत्रय (ज्ञान, दर्शन, चारित्र), तीन प्रकार पुरुष (उत्तम, मध्यम, जघन्य), तीन प्रकार के धर्म ( श्रुत धर्म, चारित्र धर्म, अस्तिकाय धर्म आदि) । ח ב ר רלד स्थान-४–चार संख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे-चातुर्याम धर्म, चार प्रकार पुरुष आदि सात सौ चतुर्भंगियाँ हैं । स्थान- ५ - पॉच संख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे- पॉच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच गति, पाँच: इन्द्रिय आदि । स्थान-६-छः संख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे- छह काय, छह लेश्याऍ, गणि के छह गुण, षड्द्रव्य, छह आरे आदि । स्थान-७–सात संख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे- सर्वज्ञ के सात लक्षण, अल्पज्ञों के सात लक्षण, सात स्वर, सात प्रकार का विनय आदि । स्थान- ८ - आठ संख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे-आठ विभक्तियाँ, आठ पालनीय शिक्षाएँ। आदि । 55555555 स्थान- ९–नौ संख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे- ब्रह्मचर्य की नौ बाडें, भगवान महावीर के शासन के ९ तीर्थंकर - नाम - कर्मधारी आदि । स्थान- १० - दस संख्यक पदार्थों का वर्णन, जैसे- दस चित्त समाधि, दस स्वप्न - फल, प्रकार के सत्य, दस प्रकार के असत्य, दस प्रकार की मिश्र भाषा आदि । स्थानांगसूत्र में अनेक विषयों सम्बन्धी सामग्री का व्यवस्थित संकलन होने के कारण इसे एक वहुउपयोगी कोष भी माना जाता है। chapter has Elaboration-Divided in ten chapters, this shrut has been written in a unique style. In this, the nomenclature been replaced by sthana (place or position). Every sthana carries the number that is exclusively associated with the group names listed in that chapter in terms of constituent number of units of that specifion group. Brief description of these is as follows --- Sthana-1-Soul is one, therefore this chapter lists and describes things that have such unitary existence. श्रुतज्ञान Sthana-2--This chapter lists and describes things that exist in groups of two or popularly expressed in twos. e.g. jiva-ajiva (souli Jain Education International ( ४०३ ) 5 5 5 5 5 5555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 HO For Private Personal Use Only Shrut-Jnand www.jainelibrary.org

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