Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 472
________________ 野野新節點贸贸易踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪野醫醫写的 如断听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जंति, दंसिज्जति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ। ___ से तं ठाणे। अर्थ-प्रश्न-स्थानांगसूत्र में क्या है ? उत्तर-स्थानांग में अथवा स्थानांग की प्ररूपणा द्वारा जीवों की स्थापना की जाती है, अजीवों की स्थापना की जाती है, जीवाऽजीवों की स्थापना की जाती है, स्व-समय अर्थात् जैन सिद्धान्त की स्थापना की जाती है, पर-समय अर्थात् जैनेतर सिद्धान्तों की स्थापना की जाती है, स्व-समय-पर-समय अर्थात् दोनों सिद्धान्तों की स्थापना की जाती है, तथा लोक, अलोक व लोकाऽलोक की स्थापना की जाती है। स्थानांग में टंक (छिने तट वाले पर्वत), कूट, शैल, शिखर, प्राग्भार (पर्वत का उभार), कुण्ड, गुफा, आकर, द्रह, (तालाब) नदी आदि का वर्णन है। स्थानांगसूत्र में परिमित वाचनाएँ, संख्यात अनुयोगद्वार संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं। अंगों की गणना से यह तीसरा अंग है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, २१ उद्देशन काल, २१ समुद्देशन काल, ७२ हजार पदाग्रानुसार पद, संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं। इसमें शाश्वत, कृत, निबद्ध व निकाचित द्वारा सिद्ध जिन-प्रणीत भावों का आख्यान है, प्ररूपणा है, दर्शन है, निदर्शन है, तथा उपदर्शन है। इसका अध्ययन करने वाला इसमें एकात्म तन्मय हो ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। ऐसी चरण-करण रूप प्ररूपणा इसमें की गई है। __यह स्थानांगसूत्र का वर्णन है। 85. Question-What is this Sthanang Sutra? Answer-In Sthanang Sutra or with the help of the so propagations in Sthanang Sutra the subject of jiva (being) is validated, the subject of ajiva (non-being or matter) is validated, the subject of jivaajiva (being and matter) is validated, sva-maty or Jain principles are validated, par-mat or principles of others schools are validated, sva-par-mat or principles of both thesea 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听所听听听听听听听听听听听$ श्रतज्ञान (४०१ BE E E EEEEEEEEEmage Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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