Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 486
________________ NarraPIERRIHIPIECIFICENTERPRETICLELIELELE LELE LELELECCICE ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) 卐 ) ) ) ) ) ) (७) उपासकदशांग सूत्र परिचय 7. UPASAKADASHANG SUTRA ८९ : से किं तं उवासगदसाओ ? उवासगदसासु णं समणोवासयाणं नगराई, उज्जाणाणि, चेइयाई, वणसंडाइं, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइअ-परलोइआ है + इडिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परियागा, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, म संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अन्तकिरिआओ अ आघविज्जति। उवासगदसासु परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुअक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, 卐 दस समुद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइआ म जिण-पण्णत्ता भावा आघविज्जति, पन्नविजंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदसिज्जंति, उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ। से तं उवासगदसाओ। अर्थ-प्रश्न-उपासकदशा सूत्र में क्या है? उत्तर-उपासकदशा में श्रमणोपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक-परलोक की ऋद्धि विशेष, भोग-परित्याग, ॐ प्रव्रज्या, तप-उपधान, शील-व्रत, गुण-व्रत, विरमण-व्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास धारण, प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्त-प्रत्याख्यान, पादोपगमन, देवलोक-गमन, श्रेष्ठ कुल में 卐 उत्पत्ति, पुनःबोधि प्राप्ति, तथा अन्तःक्रिया आदि विषयों का वर्णन है। उपासकदशा की परिमित वाचनाएँ, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढा, संख्यात ॥ + श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ तथा संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं। 卐 अंगार्थ की अपेक्षा से यह सातवॉ अंग है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दस अध्ययन, दस E उद्देशन काल और दस समुद्देशन काल हैं। इसका पद परिमाण संख्यात सहस्र पदाग्र है। $55听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) 卐 ॥ श्रुतज्ञान O 5 ( ४१५ ) Shrut-Jnana卐 955555555555555555550 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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