Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 413
________________ <AT & E F S S IF IF IF IN IF 5 & IF AF AG 4 5 6 7 N IF IN IF IN IF IF I IF I US US US! स्थूल रूप से ऐसा लगता है कि लब्धि अक्षर केवल संज्ञी जीवों को ही होता है । किन्तु वस्तुतः इन्द्रिय के अभाव में भी भाव का अभाव नहीं होता। विकलेन्द्रिय व असंज्ञी जीवों को भी क्षयोपशम भाव होता है। अतः उन्हें भी भावश्रुत की प्राप्ति होती है चाहे वह अव्यक्त ही हो। ऐसे जीवों में भी आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुन संज्ञा, तथा परिग्रह संज्ञा होती है। संज्ञा का अर्थ तीव्र अभिलाषा । अभिलाषा अव्यक्त होने पर भी शब्दानुग्राही है। अतः ऐसे जीवों को भी लब्धि अक्षर माना गया है। यह छह प्रकार का बताया है (१) श्रोत्रेन्द्रिय लब्धि अक्षर-शब्द, भाषा, ध्वनि तथा उसके आरोह-अवरोहादि से अभिप्राय समझ लेना । சு (२) चक्षुरिन्द्रियलब्धि अक्षर - पुस्तक आदि पढ़कर, संकेत देखकर, हाव-भाव अथवा इंग देखकर अभिप्राय समझ लेना । (३) घ्राणेन्द्रिय लब्धि अक्षर - गन्ध तथा गंध में परिवर्तन द्वारा अभिप्राय समझ लेना । (४) रसनेन्द्रिय लब्धि अक्षर- स्वाद तथा स्वाद परिवर्तन द्वारा अभिप्राय समझ लेना । (५) स्पेशनेन्द्रिय लब्धि अक्षर-स्पर्श तथा स्पर्श परिवर्तन द्वारा अभिप्राय समझ लेना । (६) नोइन्द्रिय लब्धि अक्षर - भावना अथवा चिन्तन द्वारा अभिप्राय समझ लेना । मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान दोनों ही पाँच इन्द्रियों तथा मन के निमित्तों से उत्पन्न होती हैं। ये क्रमशः होते हैं । मतिज्ञान कारण है और श्रुतज्ञान कार्य । मतिज्ञान स्वभावजन्य व सामान्य है। और श्रुतज्ञान चेष्टाजनित व विशेष है। मतिज्ञान अनभिव्यक्त है और श्रुतज्ञान अभिव्यक्त होता है। Elaboration-That which does not decay or deplete is called akshar. Jnana is the eternal and inherent activity of a being. When the existence of jnana comes to an end, the being ceases to exist. As it is the non-decaying attribute of a soul, jnana is also known as akshar. In other words it is a synonym of jnana. The form it takes for expressing thoughts is also known as akshar (a letter or an alphabet). The three categories of akshar shrut have been made on this basis only. श्री नन्दीसूत्र 555555555 (1) Sanjna akshar — That which is given the name (sanjna) of akshar is called sanjna akshar. In other words the particular shape or form with which a particular letter or sound is recognized is called sanjna akshar. This includes various characters, or alphabets, or symbols with which various sounds are recognized. For example a, c, d, e, f, etc. ( ३४२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only फ्र 卐 5555555555555566666666755555555555 Shri Nandisutra www.jainelibrary.org

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