Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 450
________________ 555555555555555555555555550 6$$乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 卐 विवेचन-आचार का अर्थ है आचरण। पूर्व आप्त पुरुषों द्वारा ज्ञानादि का आसेवन अर्थात् ॥ + जिस विधि का आचरण किया गया वह आचार है। जिसमें इस विषय का प्रतिपादन हो उस ॐ शास्त्र को भी आचार कहते हैं। श्रमण परम्परा में इसका अर्थ हुआ जिसमें श्रमण निर्ग्रन्थों के + आचार का सर्वांगीण वर्णन किया गया हो उस आचार प्रधान सूत्र को आचारांगसूत्र कहते हैं। इसके अन्तर्गत पाँच विषय इस प्रकार हैं (I) ज्ञानाचार-नये ज्ञान की प्राप्ति तथा प्राप्त ज्ञान की रक्षा के लिए जो आचरण आवश्यक है उसे ज्ञानाचार कहते हैं। इसकी सम्यक् आराधना के आठ प्रकार बताये हैं(१) काल-आगमों में जिस समय जिस सूत्र को पढ़ने का विधान है उसी समय उस सूत्र का अध्ययन करना। (२) विनय-अध्ययन काल में तथा अन्यथा भी ज्ञान तथा ज्ञानदाता गुरु के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखना। (३) बहुमान-ज्ञान व ज्ञानदाता के प्रति गहरी आस्था व बहुमान रखना। (४) उपधान-आगम में जिस सूत्र को पढ़ने के लिए जिस तप का विधान किया गया है, अध्ययन करते समय उसी तप का आचरण करना। तप के बिना अध्ययन फलदायी नहीं होता। (५) अनिलवण-ज्ञान और ज्ञानदाता के नाम को गुप्त रखने की चेष्टा नहीं करना। (६) व्यंजन-सूत्र का यथाशक्ति शुद्ध उच्चारण करना। शुद्ध उच्चारण निर्जरा का हेतु होता है, और अशुद्ध उच्चारण अतिचार का। (७) अर्थ-बिना स्वेच्छा से जोड़े-घटाए सूत्रों का प्रामाणिकता से अर्थ करना। (८) तदुभय-आगमों का अध्ययन और अध्यापन विधिपूर्वक तथा अतिचाररहित करना। (II) दर्शनाचार-सम्यक् साधना के फलस्वरूप आध्यात्मिक विकास होता है। इसके आध्यात्मिक विकास के परिणामस्वरूप ज्ञेयमात्र को तात्विक रूप जानने की, हेय को त्याग देने की और उपादेय को ग्रहण करने की आन्तरिक रुचि जन्म लेती है। इसे निश्चय सम्यक्त्व या विशुद्ध सम्यक्त्व कहते हैं। इस रुचि से धर्म तत्त्व के प्रति निष्ठा जागती है और धीरे-धीरे के * बलवती होती जाती है-इसे व्यवहार सम्यक्त्व कहते हैं। सम्यक्त्व को स्वच्छ, दृढ़ व उद्दीप्त करने । का नाम दर्शनाचार है। इसके आठ अंग हैं(१) निःशंकित-अर्हत् वचन, केवलिभाषित धर्म, धर्म-संघ, तथा मोक्ष-प्राप्ति के उपायों के प्रति कोई शंका नहीं रखना तथा आत्म तत्त्व पर निराग्रह श्रद्धा रखना। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听! श्रतज्ञान 0 (३७९ ) Shrut-Jnanay 5555555555555555555550 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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