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EEEE (१) आचारांगसूत्र परिचय
___ 1. ACHARANG SUTRA ८३. से किं तं आयारे?
आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोअर-विणय-वेणइअ-सिक्खा-भासा-अभासाचरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविज्जति। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा(१) नाणायारे, (२) दंसणायारे, (३) चरित्तायारे, (४) तपायारे, (५) वीरियायारे। ___आयारे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ।
से गं अंगठ्ठयाए पढमे अंगे, दो सुअक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइ. म उद्देसणकाला, पंचासीइ समुद्देसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखिजा
अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कडनिबद्ध-निकाइआ, जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जति, परूविज्जतिक
दसिज्जंति, निदसिज्जंति, उवदंसिज्जंति। " से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एणं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ। से तं आयारे।
अर्थ-प्रश्न-आचारांग में क्या है ?
उत्तर-आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर, विनय, विनय-फल, शिक्षा, भाषा, अभाषा, चरण, करण, यात्रा, मात्रा, वृत्तियाँ इत्यादि विषय कहे गये हैं। यह आचार संक्षेप में पाँच प्रकार का बताया गया है, जो इस प्रकार है-(१) ज्ञानाचार, (२) दर्शनाचार, (३) चारित्राचार, (४) तपाचार, और (५) वीर्याचार।
आचारांग में परिमित वाचनाएँ हैं। इसमें संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छंद, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं। __यह आचारांग अंगों की दृष्टि से प्रथम अंग है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध, पच्चीस अध्ययन, पिच्यासी उद्देशनकाल, और पिच्यासी समुद्देशनकाल हैं। इसमें पद परिमाण से अठारह
हजार पद, संख्यात अक्षर तथा अनन्त गम और अनन्त पर्यायें हैं। इसमें परिमित त्रस तथा ॐ अनन्त स्थावर जीवों का वर्णन है। शाश्वत (धर्मास्तिकाय आदि) और कृत (निर्मित) तथा स्वाभाविक पदार्थों के स्वरूप का इसमें वर्णन है। नियुक्ति आदि अनेक प्रकार से
Shrut-Jnana 0555555555555555555555555555550
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श्रुतज्ञान
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