Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 464
________________ % % %% Marerarm 50 से 'णं अंगठ्ठयाए बिइए अंगे, दो सुअखंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं. उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीसं पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कडनिबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति, निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणए आघविज्जइ। से तं सूयगडे। अर्थ-प्रश्न-उस सूत्रकृतांग में क्या है ? उत्तर-सूत्रकृतांग में लोक सूचित किया है, अलोक सूचित किया है, लोकालोक सूचित किया है, जीव सूचित किया है, अजीव सूचित किया है और जीवाजीव सूचित किया है। साथ ही स्व-मत, पर-मत तथा स्व-पर-मत भी सूचित किया है। सूत्रकृतांग में १८0 क्रियावादियों, ८४ अक्रियावादियों, ६७ अज्ञानवादियों और ३२ ॐ विनयवादियों को मिलाकर ३६३ पाखण्डियों को व्यूहबद्ध कर स्वसिद्धान्त की स्थापना की %%岁岁岁岁身需$% 不中听听听听听听听$ s听听听听$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听断听听听听听 गई है। % % %% ॐ सूत्रकृतांग में परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार हैं, संख्यात छंद, संख्यात [ श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं। यह अंग अर्थ की दृष्टि से द्वितीय अंग है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध और २३ अध्ययन हैं। म तथा ३३ उद्देशन काल व ३३ समुद्देशन काल हैं। इसका पद परिमाण ३६ हजार है। इसमें संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं। इसमें 5 5 शाश्वत, कृत, निबद्ध व हेतु आदि द्वारा सिद्ध जिन-प्रणीत भावों का आख्यान है, प्ररूपणा है, दर्शन है, निदर्शन है, तथा उपदर्शन है। इसका अध्ययन करने वाला इसमें तल्लीन होने पर उस अर्थ का ज्ञाता एवं विज्ञाता हो * जाता है। इस प्रकार की चरण-करण रूप प्ररूपणा इसमें की गई है। यह सूत्रकृतांग का वर्णन है। 84. Question-What is this Sutrakritang? Answer-Sutrakritang informs about lok (inhabited space), s + alok (un-inhabited space or the space beyond), and lokalok : (inhabited and un-inhabited space) and jiva (being), ajiva (non 先当男览历步步紧紧%%% श्रुतज्ञान ( ३९३ ) Shrut-Jnana Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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