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%%% % %% % % आचारांग के चर्चित विषय
THE SUBJECTS IN ACHARANG आचारांग में चर्चित कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों का संक्षिप्त परिचय
चरणसत्तरि-५ महाव्रत, १० प्रकार के श्रमण धर्म, १७ विधि संयम, १0 प्रकार का वैयावृत्य, ९ प्रकार की ब्रह्मचर्यगुप्ति, रत्नत्रय, १२ प्रकार के तप, ४ कषाय निग्रह ये सत्तरक चरण अथवा चरणसत्तरि है।
करणसत्तरि-४ प्रकार की पिण्डविशुद्धि, ५ समिति, १२ भावनाएँ, १२ भिक्षु प्रतिमाएँ, ५ इन्द्रिय-निरोध, २५ प्रकार की प्रतिलेखना, ३ गुप्तियाँ, और ४ प्रकार के अभिग्रह ये सत्तरकरण अथवा करणसत्तरि है।
गोचर-भिक्षा ग्रहण करने की शास्त्र सम्मत विधि। विनय-ज्ञानी व चारित्रवान का आदर-सम्मान। वैनयिक-शिष्यों का स्वरूप और उनके कर्त्तव्य का वर्णन। शिक्षा-ग्रहण शिक्षा और आसेवन शिक्षा दोनों का पालन करना। भाषा-साधुवृत्ति में बोलने योग्य दो भाषाएँ-सत्य एवं व्यवहार। अभाषा-साधुवृत्ति में वर्जित भाषाएँ-असत्य एवं मिश्रा यात्रा-आवश्यकीय संयम, तप, ध्यान, समाधि एवं स्वाध्याय में प्रवृत्ति करना। मात्रा-संयम-पालन हेतु शरीर-निर्वाह के लिए परिमित आहार ग्रहण करना।
वृत्ति-विविध प्रकार अभिग्रह धारण कर संयम की पुष्टि करना। आचारांग की विशेषताएँ __वाचना-आरम्भ से अन्त तक जितनी बार शिष्य को नया पाठ दिया जाता है और लिखा
जाता है वह वाचना कहलाता है। आचारांग में संख्यात वाचनाएँ हैं। ___अनुयोगद्वार-अनुयोग का अर्थ है प्रवचन। सूत्र अल्पाक्षर युक्त होता है और अर्थ बहुअक्षर युक्त तथा विशाल। जो सूत्र और अर्थ के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का माध्यम है वह है। अनुयोगद्वार। सूत्र का मर्म पूर्णतया भलीभाँति समझने के लिए चार अनुयोगद्वार बताए हैं-9 उपक्रम, निक्षेप, अनुगम तथा नय। आचारांग में ऐसे संख्यात सूत्र या पद हैं।
वेढा अथवा वेष्टक-किसी एक विषय को प्रतिपादित करने वाले वाक्य को अथवा किसी छन्द विशेष को वेष्टक कहते हैं। आचारांग में संख्यात वेष्टक हैं।
श्लोक-आचारांग में अनुष्टुप आदि श्लोक संख्यात हैं।
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男穿西
श्रुतज्ञान ( ३८७ )
Shrut-Jnana, मममममममममममममममम
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